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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1426
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
4
अ꣣भि꣢ वा꣣युं꣢ वी꣣꣬त्य꣢꣯र्षा गृणा꣣नो꣢३꣱ऽभि꣢ मि꣣त्रा꣡वरु꣢꣯णा पू꣣य꣡मा꣢नः । अ꣣भि꣡ न꣢꣯रं धी꣣ज꣡व꣢नꣳ रथे꣣ष्ठा꣢म꣣भी꣢न्द्रं꣣ वृ꣡ष꣢णं꣣ व꣡ज्र꣢बाहुम् ॥१४२६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । वा꣣यु꣢म् । वी꣣ति꣢ । अ꣣र्ष । गृणानः꣢ । अ꣣भि꣢ । मि꣣त्रा꣢ । मि꣣ । त्रा꣢ । व꣡रु꣢꣯णा । पू꣣य꣡मा꣢नः । अ꣣भि꣢ । न꣡र꣢꣯म् । धी꣣ज꣡व꣢नम् । धी꣣ । ज꣡व꣢꣯नम् । र꣣थेष्ठा꣢म् । र꣣थे । स्था꣢म् । अ꣡भि꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वृ꣡ष꣢꣯णम् । व꣡ज्र꣢꣯बाहुम् । व꣡ज्र꣢꣯ । बा꣣हुम् ॥१४२६॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि वायुं वीत्यर्षा गृणानो३ऽभि मित्रावरुणा पूयमानः । अभि नरं धीजवनꣳ रथेष्ठामभीन्द्रं वृषणं वज्रबाहुम् ॥१४२६॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । वायुम् । वीति । अर्ष । गृणानः । अभि । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । पूयमानः । अभि । नरम् । धीजवनम् । धी । जवनम् । रथेष्ठाम् । रथे । स्थाम् । अभि । इन्द्रम् । वृषणम् । वज्रबाहुम् । वज्र । बाहुम् ॥१४२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1426
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में उपासक को प्रेरित किया गया है।
पदार्थ -
हे सोम अर्थात् शान्तिमय उपासक ! (गृणानः) परमात्मा की स्तुति करता हुआ तू (वीती) वेग से (वायुम्) गतिशील मन को (अभि अर्ष) परमात्मा के प्रति प्रेरित कर। (पूयमानः) पवित्र किया जाता हुआ तू (मित्रावरुणा) प्राण-अपान को (अभि अर्ष) परमात्मा के प्रति प्रेरित कर, (धीजवनम्) ध्यान में वेगवान्, (रथेष्ठाम्) देह-रथ में स्थित (नरम्) नेता जीवात्मा को (अभि अर्ष) परमात्मा के प्रति प्रेरित कर और (वृषणम्) सुखवर्षक, (वज्रबाहुम्) शस्त्रास्त्रधारी सेनापति के समान शत्रुओं के विनाश में समर्थ (इन्द्रम्) परमेश्वर को (अभि अर्ष) अपनी ओर प्रेरित कर ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य जब अपने मन, बुद्धि, प्राण-अपान और जीवात्मा को परमात्मा की ओर प्रेरित करता है, तब परमात्मा झट स्वयं ही उसके सम्मुख प्रकट हो जाता है ॥१॥
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