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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1473
ऋषिः - उशनाः काव्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
6
शु꣣ष्मी꣢꣫ शर्धो꣣ न꣡ मारु꣢꣯तं पव꣣स्वा꣡न꣢भिशस्ता दि꣣व्या꣢꣫ यथा꣣ वि꣢ट् । आ꣢पो꣣ न꣢ म꣣क्षू꣡ सु꣢म꣣ति꣡र्भ꣢वा नः स꣣ह꣡स्रा꣢प्साः पृतना꣣षा꣢꣫ण् न य꣣ज्ञः꣢ ॥१४७३॥
स्वर सहित पद पाठशुष्मी꣢ । श꣡र्धः꣢꣯ । न । मा꣡रु꣢꣯तम् । प꣣वस्व । अ꣡न꣢꣯भिशस्ता । अन् । अ꣣भिशस्ता । दिव्या꣢ । य꣡था꣢꣯ । विट् । आ꣡पः꣢꣯ । न । म꣣क्षु꣢ । सु꣣मतिः꣢ । सु꣣ । मतिः꣢ । भ꣣व । नः । सहस्रा꣡प्साः꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢ । अ꣣प्साः । पृतनाषा꣢ट् । न । य꣣ज्ञः꣢ ॥१४७३॥
स्वर रहित मन्त्र
शुष्मी शर्धो न मारुतं पवस्वानभिशस्ता दिव्या यथा विट् । आपो न मक्षू सुमतिर्भवा नः सहस्राप्साः पृतनाषाण् न यज्ञः ॥१४७३॥
स्वर रहित पद पाठ
शुष्मी । शर्धः । न । मारुतम् । पवस्व । अनभिशस्ता । अन् । अभिशस्ता । दिव्या । यथा । विट् । आपः । न । मक्षु । सुमतिः । सु । मतिः । भव । नः । सहस्राप्साः । सहस्र । अप्साः । पृतनाषाट् । न । यज्ञः ॥१४७३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1473
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में मनुष्य को प्रेरित किया गया है।
पदार्थ -
हे सोम अर्थात् शान्तिप्रिय मानव ! (शुष्मी) बलवान् तू (मरुतां शर्धः न) पवनों के गण के समान (पवस्व) क्रियाशील बन। (दिव्या विट्) दिव्य गुणोंवाली विदुषी प्रजा (यथा) जैसे (अनभिशस्ता) अनिन्दित होती है, वैसे ही तू अनिन्दित हो। (आपः न) नदियों के समान (मक्षु) शीघ्र (नः) हमारे लिए (सुमतिः) परोपकार की मतिवाला (भव) बन। (सहस्राप्साः) सहस्र रूपोंवाले (पृतनाषाट् न) सेनाओं को पराजित करनेवाले सेनापति के समान (यज्ञः) आत्म-बलिदान करनेवाला बन ॥३॥ यहाँ मालोपमा अलङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - मनुष्य यदि पवनों के समान बलवान् विद्वानों के समान प्रशस्त, नदियों के समान परोपकारी और सेनापतियों के समान आत्म-बलिदान करनेवाले हों, तो निश्चित ही राष्ट्र सर्वोन्नत हो जाए ॥३॥
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