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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1474
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - वर्धमाना गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
त्व꣡म꣢ग्ने य꣣ज्ञा꣢ना꣣ꣳ हो꣢ता꣣ वि꣡श्वे꣣षाꣳ हि꣣तः꣢ । दे꣣वे꣢भि꣣र्मा꣡नु꣢षे꣣ ज꣡ने꣢ ॥१४७४॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । अ꣣ग्ने । यज्ञा꣡ना꣢म् । हो꣡ता꣢꣯ । वि꣡श्वे꣢꣯षाम् । हि꣡तः꣢ । दे꣣वे꣡भिः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षे । ज꣡ने꣢꣯ ॥१४७४॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमग्ने यज्ञानाꣳ होता विश्वेषाꣳ हितः । देवेभिर्मानुषे जने ॥१४७४॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । अग्ने । यज्ञानाम् । होता । विश्वेषाम् । हितः । देवेभिः । मानुषे । जने ॥१४७४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1474
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में २ क्रमाङ्क पर परमात्मा और सूर्य के विषय में की जा चुकी है। यहाँ परमेश्वर के गुण-कर्मों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
हे (अग्ने) अग्रनेता, ज्ञानी, सर्वान्तर्यामी, तेजस्वी, पापों को दग्ध करनेवाले परमेश्वर ! (त्वम्) सर्वोपकारी आप (यज्ञानाम्) देवपूजा, सङ्गतिकरण, दान रूप व्यवहारों के (होता) दाता हो और (विश्वेषाम्) सबके (हितः) हितकर्ता हो। साथ ही (मानुषे जने) मानव-समाज में (देवेभिः) सदाचारी विद्वानों द्वारा [उपासना किये जाते हो] ॥१॥
भावार्थ - जगदीश्वर हमारा पिता होकर हमें सब व्यवहार सिखाता है, न्यायकारी और दयालु होकर सबका हित करता है, इस कारण सब लोगों को उसकी पूजा करनी चाहिए ॥१॥
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