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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1512
ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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न꣣दं꣢ व꣣ ओ꣡द꣢तीनां न꣣दं꣡ योयु꣢꣯वतीनाम् । प꣡तिं꣢ वो꣣ अ꣡घ्न्या꣢नां धेनू꣣ना꣡मि꣢षुध्यसि ॥१५१२॥

स्वर सहित पद पाठ

न꣣द꣢म् । वः꣣ । ओ꣡द꣢꣯तीनाम् । न꣣द꣢म् । यो꣡यु꣢꣯वतीनाम् । प꣡ति꣢꣯म् । वः꣣ । अ꣡घ्न्या꣢꣯नाम् । अ । घ्न्या꣣नाम् । घेनूना꣢म् । इ꣣षुध्यसि ॥१५१२॥


स्वर रहित मन्त्र

नदं व ओदतीनां नदं योयुवतीनाम् । पतिं वो अघ्न्यानां धेनूनामिषुध्यसि ॥१५१२॥


स्वर रहित पद पाठ

नदम् । वः । ओदतीनाम् । नदम् । योयुवतीनाम् । पतिम् । वः । अघ्न्यानाम् । अ । घ्न्यानाम् । घेनूनाम् । इषुध्यसि ॥१५१२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1512
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे मनुष्यो ! (वः) तुम (ओदतीनाम्) प्रकाश से आप्लुत करनेवाली उषाओं के (नदम्) प्रकाशक जगदीश्वर की, (योयुवतीनाम्) स्वयं को अन्यों के साथ मिलानेवाली नदियों के (नदम्) कल-कल नाद करानेवाले जगदीश्वर की और (वः) तुम्हारी (अघ्न्यानाम्) न मारी जाने योग्य (धेनूनाम्) गायों के (पतिम्) रक्षक इन्द्र जगदीश्वर की स्तुति करो। हे इन्द्र जगदीश्वर ! आप अधार्मिक शत्रुओं पर (इषुध्यसि) बाण चलाते हो, अर्थात् उन्हें दण्डित करते हो ॥१॥ यहाँ ‘नद’ की आवृत्ति में यमक अलङ्कार है और ‘तीनों’ की आवृत्ति में छेकानुप्रास, नकार की आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है ॥१॥

भावार्थ - परमेश्वर की उषाओं को चमकानेवाला, सूर्य को प्रदीप्त करनेवाला, बिजलियों को विद्योतित करनेवाला, पवन को चलानेवाला, नदियों में कल-कल निनाद करानेवाला, धेनुओं में दूध उत्पन्न करनेवाला और दुष्टों का दलन करनेवाला है ॥१॥ इस खण्ड में जगदीश्वर और जीवात्मा का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ चौदहवें अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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