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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1513
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
4
दे꣣वो꣡ वो꣢ द्रविणो꣣दाः꣢ पू꣣र्णां꣡ वि꣢वष्ट्वा꣣सि꣡च꣢म् । उ꣡द्वा꣢ सि꣣ञ्च꣢ध्व꣣मु꣡प꣢ वा पृणध्व꣣मा꣡दिद्वो꣢꣯ दे꣣व꣡ ओह꣢ते ॥१५१३॥
स्वर सहित पद पाठदे꣣वः꣢ । वः꣣ । द्रविणोदाः꣢ । द्र꣣विणः । दाः꣢ । पू꣣र्णा꣢म् । वि꣣वष्टु । आसि꣡च꣢म् । आ꣣ । सि꣡च꣢꣯म् । उत् । वा꣣ । सिञ्च꣡ध्व꣢म् । उ꣡प꣢꣯ । वा । पृणध्वम् । आ꣢त् । इत् । वः꣣ । देवः꣢ । ओ꣣हते ॥१५१३॥
स्वर रहित मन्त्र
देवो वो द्रविणोदाः पूर्णां विवष्ट्वासिचम् । उद्वा सिञ्चध्वमुप वा पृणध्वमादिद्वो देव ओहते ॥१५१३॥
स्वर रहित पद पाठ
देवः । वः । द्रविणोदाः । द्रविणः । दाः । पूर्णाम् । विवष्टु । आसिचम् । आ । सिचम् । उत् । वा । सिञ्चध्वम् । उप । वा । पृणध्वम् । आत् । इत् । वः । देवः । ओहते ॥१५१३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1513
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५५ क्रमाङ्क पर परमेश्वर की उपासना के विषय में की जा चुकी है। यहाँ अग्निहोत्र का विषय कहते हैं।
पदार्थ -
हे मनुष्यो ! (द्रविणोदाः) आरोग्यरूप धन वा बल देनेवाला, (देवः) प्रकाश से परिपूर्ण और प्रकाश देनेवाला यज्ञाग्नि (वः) तुम्हारी (पूर्णाम्) केसर, कस्तूरी आदि से मिश्रित घी से पूर्ण, (आसिचम्) सींचनेवाली सुव्रा को (विवष्टु) ग्रहण करे। तुम (उत्सिञ्चध्वं वा) सुगन्धित द्रव्यों से मिश्रित घृत की आहुतियों से उस अग्नि को सींचो, (उपपृणध्वं वा) और आहुति देने से खाली हुई स्रुवा को फिर घृत से भरो। (आत् इत्) तदनन्तर ही (देवः) प्रदीप्त यज्ञाग्नि (वः) तुम अग्निहोत्रियों को (ओहते) यज्ञ के लाभ प्राप्त करायेगा ॥१॥
भावार्थ - बारम्बार आहुति देने से यज्ञाग्नि आरोग्य, दीप्ति आदि लाभों से याज्ञिकों का उपकार करता हुआ परमेश्वर की उपासना में भी सहायक होता है ॥१॥
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