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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1692
ऋषिः - कलिः प्रागाथः देवता - इन्द्रः छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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वृ꣡क꣢श्चिदस्य वार꣣ण꣡ उ꣢रा꣣म꣢थि꣣रा꣢ व꣣यु꣡ने꣢षु भूषति । से꣢꣫मं न꣣ स्तो꣡मं꣢ जुजुषा꣣ण꣢꣫ आ ग꣣ही꣢न्द्र꣣ प्र꣢ चि꣣त्र꣡या꣢ धि꣣या꣢ ॥१६९२॥

स्वर सहित पद पाठ

वृ꣡कः꣢꣯ । चि꣣त् । अस्य । वारणः꣢ । उ꣣राम꣡थिः꣢ । उ꣣रा । म꣡थिः꣢꣯ । आ । व꣣यु꣡ने꣢षु । भू꣣षति । सा꣢ । इ꣣म꣢म् । नः꣣ । स्तो꣡म꣢꣯म् । जु꣣जुषाणः꣢ । आ । ग꣣हि । इ꣡न्द्र꣢꣯ । प्र । चि꣣त्र꣡या । धि꣣या꣢ ॥१६९२॥


स्वर रहित मन्त्र

वृकश्चिदस्य वारण उरामथिरा वयुनेषु भूषति । सेमं न स्तोमं जुजुषाण आ गहीन्द्र प्र चित्रया धिया ॥१६९२॥


स्वर रहित पद पाठ

वृकः । चित् । अस्य । वारणः । उरामथिः । उरा । मथिः । आ । वयुनेषु । भूषति । सा । इमम् । नः । स्तोमम् । जुजुषाणः । आ । गहि । इन्द्र । प्र । चित्रया । धिया ॥१६९२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1692
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(वारणः) रोग आदि के निवारक, (उरामथिः) फैले हुए अँधेरे को नष्ट करनेवाले (वृकःचित्) सूर्य के समान (अस्य) इन आप जगदीश्वर का (वारणः) दुःख आदि का निवारक प्रताप (वयुनेषु) आपके कर्मों में (आ भूषति) भूषण-रूप है। (सः) वह आप, हे (इन्द्र) परमात्मन् ! (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोमम्) स्तोत्र को (जुजुषाणः) सेवन करते हुए (चित्रया धिया) अद्भुत प्रज्ञा वा क्रिया के साथ (प्र आ गहि) भली-भाँति हमारे पास आओ ॥२॥ यहाँ श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - जिस जगदीश्वर का प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान सर्वत्र फैल रहा है, उसकी सबको श्रद्धा के साथ उपासना करनी चाहिए ॥२॥

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