Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1789
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - सूर्यः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
4
ब꣡ट् सू꣢र्य꣣ श्र꣡व꣢सा म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि स꣣त्रा꣡ दे꣢व म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि । म꣣ह्ना꣢ दे꣣वा꣡ना꣢मसु꣣꣬र्यः꣢꣯ पु꣣रो꣡हि꣢तो वि꣣भु꣢꣫ ज्योति꣣र꣡दा꣢भ्यम् ॥१७८९॥
स्वर सहित पद पाठब꣢ट् । सू꣣र्य । श्र꣡व꣢꣯सा । म꣣हा꣢न् । अ꣣सि । सत्रा꣢ । दे꣣व । महा꣢न् । अ꣣सि । मह्ना꣢ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । अ꣣सुर्यः꣢ । अ꣣ । सुर्यः꣢ । पु꣣रो꣡हि꣢तः । पु꣣रः꣢ । हि꣣तः । विभु꣢ । वि꣣ । भु꣢ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । अ꣡दा꣢꣯भ्यम् । अ । दा꣣भ्यम् ॥१७८९॥
स्वर रहित मन्त्र
बट् सूर्य श्रवसा महाꣳ असि सत्रा देव महाꣳ असि । मह्ना देवानामसुर्यः पुरोहितो विभु ज्योतिरदाभ्यम् ॥१७८९॥
स्वर रहित पद पाठ
बट् । सूर्य । श्रवसा । महान् । असि । सत्रा । देव । महान् । असि । मह्ना । देवानाम् । असुर्यः । अ । सुर्यः । पुरोहितः । पुरः । हितः । विभु । वि । भु । ज्योतिः । अदाभ्यम् । अ । दाभ्यम् ॥१७८९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1789
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - आगे फिर उसी विषय को कहते हैं।
पदार्थ -
(बट्) सचमुच हे (सूर्य) सूर्य ! तू (श्रवसा) यश से (महान् असि) महान् है। (सत्रा) सचमुच ही, हे (देव) ज्योतिर्मय ! तू (महान् असि) महान् है। (असुर्यः) प्राणियों का हितकर्त्ता तू (मह्ना) महिमा से (देवानाम्) भूमण्डल, सोम, मङ्गल, बुध आदि प्रकाशनीयों के (पुरोहितः) सामने निहित है, जिससे उन्हें प्रकाशित कर सके। तू (विभु) व्यापक, (अदाभ्यम्) हिंसा न किये जा सकने योग्य (ज्योतिः) ज्योति है—यह सूर्य की अन्योक्ति से जीवात्मा को कहा गया है ॥२॥ यहाँ भी अन्योक्ति अलङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - जीवात्मा भी सूर्य के समान यशस्वी, गुणों में महान्, अग्रणी और ज्योतिष्मान् है, इसलिए वह अपने गुणों को पहचान कर महान् कर्मों को करता हुआ अभ्युदय और निःश्रेयस को प्राप्त करे ॥२॥ इस खण्ड में अध्यात्मयोग, मृत्यु की अवश्यंभाविता, परमात्मा, ब्रह्मानन्द-रस, आत्मोद्बोधन इन विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ संगति है ॥ बीसवें अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥
इस भाष्य को एडिट करें