Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1790
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
6

उ꣡प꣢ नो꣣ ह꣡रि꣢भिः सु꣣तं꣢ या꣣हि꣡ म꣢दानां पते । उ꣡प꣢ नो꣣ ह꣡रि꣢भिः सु꣣त꣢म् ॥१७९०॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । ह꣡रि꣢꣯भिः । सु꣣त꣢म् । या꣣हि꣢ । म꣣दानाम् । पते । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । ह꣡रि꣢꣯भिः । सु꣣त꣢म् ॥१७९०॥


स्वर रहित मन्त्र

उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते । उप नो हरिभिः सुतम् ॥१७९०॥


स्वर रहित पद पाठ

उप । नः । हरिभिः । सुतम् । याहि । मदानाम् । पते । उप । नः । हरिभिः । सुतम् ॥१७९०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1790
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (मदानां पते) आनन्ददायक ज्ञानों और कर्मों के स्वामी जीवात्मन् ! तू (नः) हमारी (हरिभिः) ज्ञानेन्द्रियों से (सुतम्) उत्पन्न किये ज्ञान को (उप याहि) प्राप्त कर, (नः) हमारी (हरिभिः) कर्मेन्द्रियों से (सुतम्) किये गये कर्म को (उप याहि) प्राप्त कर ॥१॥

भावार्थ - मनसहित ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय रूप साधनों से निष्पन्न किये गये ज्ञान और कर्म का सङ्ग्रह करके मनुष्य का जीवात्मा अध्यात्ममार्ग में पग रख कर उन्नति प्राप्त करे ॥१॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top