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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1800
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
3
भू꣢रि꣣ हि꣢ ते꣣ स꣡व꣢ना꣣ मा꣡नु꣢षेषु꣣ भू꣡रि꣢ मनी꣣षी꣡ ह꣢वते꣣ त्वा꣢मित् । मा꣢꣫रे अ꣣स्म꣡न्म꣢घव꣣ञ्ज्यो꣡क्कः꣢ ॥१८००॥
स्वर सहित पद पाठभू꣡रि꣢꣯ । हि । ते꣢ । स꣡व꣢꣯ना । मा꣡नु꣢꣯षेषु । भू꣡रि꣢꣯ । म꣣नीषी꣢ । ह꣣वते । त्वा꣢म् । इत् । मा । आ꣣रे꣢ । अ꣢स्म꣢त् । म꣣घवन् । ज्यो꣢क् । क꣣रि꣡ति꣢ ॥१८००॥
स्वर रहित मन्त्र
भूरि हि ते सवना मानुषेषु भूरि मनीषी हवते त्वामित् । मारे अस्मन्मघवञ्ज्योक्कः ॥१८००॥
स्वर रहित पद पाठ
भूरि । हि । ते । सवना । मानुषेषु । भूरि । मनीषी । हवते । त्वाम् । इत् । मा । आरे । अस्मत् । मघवन् । ज्योक् । करिति ॥१८००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1800
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।
पदार्थ -
हे इन्द्र जगदीश ! (मानुषेषु) मनुष्यों में (ते) आपके (सवना) आनन्द-प्रदान (भूरि हि) बहुत हैं। (मनीषी) मनस्वी जन (त्वाम् इत्) आपको ही (भूरि) बहुत-बहुत (हवते) पुकारता है। हे (मघवन्) धनों के अधीश्वर ! आप स्वयं को (अस्मत्) हमसे (ज्योक्) देर तक (आरे) दूर (मा कः) मत रखो ॥३॥
भावार्थ - उपास्य और उपासक की समीपता से ही उपासना सफल होती है ॥३॥ इस खण्ड में जीवात्मा, परमात्मा, आचार्य, धनदान तथा उपास्य-उपासक के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ बीसवें अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त।
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