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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 44
ऋषिः - सौभरि: काण्व: देवता - अग्निः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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यो꣢꣫ विश्वा꣣ द꣡य꣢ते꣣ व꣢सु꣣ हो꣡ता꣢ म꣣न्द्रो꣡ जना꣢꣯नाम् । म꣢धो꣣र्न꣡ पात्रा꣢꣯ प्रथ꣣मा꣡न्य꣢स्मै꣣ प्र꣡ स्तोमा꣢꣯ यन्त्व꣣ग्न꣡ये꣢ ॥४४॥

स्वर सहित पद पाठ

यः꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । द꣡य꣢꣯ते । व꣡सु꣢꣯ । हो꣡ता꣢꣯ । म꣣न्द्रः꣢ । ज꣡ना꣢꣯नाम् । म꣡धोः꣢꣯ । न । पा꣡त्रा꣢꣯ । प्र꣣थमा꣢नि꣢ । अ꣣स्मै । प्र꣢ । स्तो꣡माः꣢꣯ । य꣣न्तु । अग्न꣡ये꣢ ॥४४॥


स्वर रहित मन्त्र

यो विश्वा दयते वसु होता मन्द्रो जनानाम् । मधोर्न पात्रा प्रथमान्यस्मै प्र स्तोमा यन्त्वग्नये ॥४४॥


स्वर रहित पद पाठ

यः । विश्वा । दयते । वसु । होता । मन्द्रः । जनानाम् । मधोः । न । पात्रा । प्रथमानि । अस्मै । प्र । स्तोमाः । यन्तु । अग्नये ॥४४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 44
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(होता) विविध वस्तुओं और शुभ गुणों का प्रदाता, (जनानाम्) मनुष्यों का (मन्द्रः) आनन्दजनकः (यः) जो परमेश्वर (विश्वा) समस्त (वसु) धनों को (दयते) प्रदान करता है, (अस्मै) ऐसे इस (अग्नये) नायक परमेश्वर के लिए (मधोः) शहद के (प्रथमा) श्रेष्ठ (पात्रा न) पात्रों के समान (स्तोमाः) मेरे स्तोत्र (प्रयन्तु) भली-भाँति पहुँचें ॥१०॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥१०॥

भावार्थ - जैसे घर में आये हुए विद्वान् अतिथि को मधु, दही, दूध आदि से भरे हुए पात्र सत्कारपूर्वक समर्पित किये जाते हैं, वैसे ही परम दयालु, परोपकारी के लिए भक्तिभाव से भरे हुए स्तोत्र समर्पित करने चाहिएँ ॥१०॥ इस दशति में परमात्मा के गुणवर्णनपूर्वक उससे समृद्धि आदि की याचना की गयी है, अतः इसके विषय की पूर्व दशति के विषय के साथ संगति है ॥ प्रथम प्रपाठक में पूर्व अर्ध की चतुर्थ दशति समाप्त ॥ प्रथम अध्याय में चतुर्थ खण्ड समाप्त ॥

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