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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 485
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡रि꣢ स्वा꣣ना꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वो꣣ म꣡दा꣢य ब꣣र्ह꣡णा꣢ गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢ अर्षन्ति꣣ धा꣡र꣢या ॥४८५॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । म꣡दा꣢꣯य । ब꣣र्ह꣡णा꣢ । गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢꣯ । अ꣣र्षन्ति । धा꣡र꣢꣯या ॥४८५॥
स्वर रहित मन्त्र
परि स्वानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा । मधो अर्षन्ति धारया ॥४८५॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । स्वानासः । इन्दवः । मदाय । बर्हणा । गिरा । मधो । अर्षन्ति । धारया ॥४८५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 485
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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विषय - अगले मन्त्र में आनन्द-रसों का वर्णन है।
पदार्थ -
हे (मधो) मधुर आनन्द से भरपूर सोम परमात्मन् ! (बर्हणा) श्रेष्ठ (गिरा) स्तुति वाणी के द्वारा (स्वानासः) आपसे झरते हुए (इन्दवः) आनन्द-रस (मदाय) मेरे उत्साह के लिए (धारया) धारा रूप में (परि अर्षन्ति) मेरे अन्तः करण में प्रवेश कर रहे हैं ॥९॥
भावार्थ - भक्ति में लीन मन से स्तोता जन जब परमात्मा की आराधना करते हैं, तब उन्हें परम आनन्द की अनुभूति होती है ॥९॥
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