Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 603
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
10
सं꣢ ते꣣ प꣡या꣢ꣳसि꣣ स꣡मु꣢ यन्तु꣣ वा꣢जाः꣣ सं꣢꣯ वृष्ण्या꣢꣯न्यभिमाति꣣षा꣡हः꣢ । आ꣣प्या꣡य꣢मानो अ꣣मृ꣡ता꣢य सोम दि꣣वि꣡ श्रवा꣢꣯ꣳस्युत्त꣣मा꣡नि꣢ धिष्व ॥६०३॥
स्वर सहित पद पाठस꣢म् । ते꣣ । प꣡याँ꣢꣯सि । सम् । उ꣣ । यन्तु । वा꣡जाः꣢꣯ । सम् । वृ꣡ष्ण्या꣢꣯नि । अ꣣भिमातिषा꣡हः꣢ । अ꣣भिमाति । सा꣡हः꣢꣯ । आ꣣प्या꣡य꣢मानः । आ꣣ । प्या꣡यमा꣢꣯नः । अ꣣मृ꣡ता꣢य । अ꣣ । मृ꣡ता꣢꣯य । सो꣣म । दिवि꣢ । श्र꣡वाँ꣢꣯सि । उ꣣त्तमा꣡नि꣢ । धि꣣ष्व ॥६०३॥
स्वर रहित मन्त्र
सं ते पयाꣳसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः । आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवाꣳस्युत्तमानि धिष्व ॥६०३॥
स्वर रहित पद पाठ
सम् । ते । पयाँसि । सम् । उ । यन्तु । वाजाः । सम् । वृष्ण्यानि । अभिमातिषाहः । अभिमाति । साहः । आप्यायमानः । आ । प्यायमानः । अमृताय । अ । मृताय । सोम । दिवि । श्रवाँसि । उत्तमानि । धिष्व ॥६०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 603
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3;
Acknowledgment
विषय - अगले दो मन्त्रों का पवमान सोम देवता है। इस मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे (सोम) पवित्रतादायक, करुणारसागार परमात्मन् ! (अभिमातिषाहः) कामादि शत्रुओं का पराजय करनेवाले (ते) आपके (पयांसि) प्रेमरस और आनन्दरस (संयन्तु) हमें प्राप्त हों, (उ) और (वाजाः) बल (सम्) हमें प्राप्त हों, (वृष्ण्यानि) पुरुषार्थयुक्त कर्म (सम्) हमें प्राप्त हों। (आप्यायमानः) हृदय में बढ़ते हुए आप (अमृताय) अमरत्व-प्रदान के लिए (दिवि) हमारे आत्मा में (उत्तमानि) उत्कृष्टतम (श्रवांसि) यशों को (धिष्व) निहित कीजिए ॥२॥
भावार्थ - यहाँ बढ़ते हुए चन्द्रमा का आकाश में उत्तम चाँदनी को फैलाने का अर्थ ध्वनित हो रहा है, उससे परमात्मा चन्द्रमा के समान है, यह उपमाध्वनि निकलती है ॥२॥ जैसे-जैसे परमात्मा में हमारा ध्यान बढ़ता है, वैसे-वैसे हमारे अन्तः- करण में परमात्मा मानो बढ़ता हुआ हमें आत्मबल, कर्मनिष्ठता और उत्तम यश प्रदान करता है ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें