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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 774
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
6
प्र꣡ सु꣢न्वा꣣ना꣡यान्ध꣢꣯सो꣣ म꣢र्तो꣣ न꣡ व꣢ष्ट꣣ तद्वचः꣢꣯ । अ꣢प꣣ श्वा꣡न꣢मरा꣣ध꣡सं꣢ ह꣣ता꣢ म꣣खं न भृग꣢꣯वः ॥७७४॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । सु꣣न्वाना꣡य꣢ । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡र्तः꣢꣯ । न । व꣣ष्ट । त꣢त् । व꣡चः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । श्वा꣡न꣢꣯म् । अ꣣राध꣡स꣢म् । अ꣣ । राध꣡स꣢म् । ह꣣त꣢ । म꣣ख꣢म् । न । भृ꣡ग꣢꣯वः ॥७७४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सुन्वानायान्धसो मर्तो न वष्ट तद्वचः । अप श्वानमराधसं हता मखं न भृगवः ॥७७४॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । सुन्वानाय । अन्धसः । मर्तः । न । वष्ट । तत् । वचः । अप । श्वानम् । अराधसम् । अ । राधसम् । हत । मखम् । न । भृगवः ॥७७४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 774
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - तृतीय ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ५५३ पर ‘कैसा मनुष्य समाज से बहिष्कृत करने योग्य है’ इस विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ अन्य प्रकार से व्याख्या की जा रही है।
पदार्थ -
(अन्धसः) अन्नादि भोज्य पदार्थों को (सुन्वानाय) उत्पन्न करनेवाले जगदीश्वर के लिए (मर्तः न) उपासक मनुष्य के समान, तुम (तत्) उस स्तुति-रूप (वचः) वचन को बोलने की (वष्ट) कामना करो। और, (अराधसम्) भक्ति न करनेवाले (श्वानम्) कुत्ते की वृत्तिवाले अर्थात् सांसारिक पदार्थों का लोभ करनेवाले मनुष्य को (अप हत) दूर कर दो, किस प्रकार? (भृगवः) तपस्वी महर्षि जन (मखं न) जैसे मन की चञ्चलता को दूर करते हैं ॥३॥ इस मन्त्र में दो उपमाओं की संसृष्टि है ॥३॥
भावार्थ - परमेश्वर की भक्ति करनेवाले लोगों को चाहिए कि वे भक्ति न करनेवाले, सांसारिक भोगों के लोभियों की सङ्गति न करें ॥३॥ इस खण्ड में विद्वान् आचार्य, उससे मिलनेवाले भौतिक तथा आध्यात्मिक ज्ञानरस, परमात्मा और उससे मिलनेवाले आनन्द-रस का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ द्वितीय अध्याय का षष्ठ खण्ड समाप्त ॥ द्वितीय अध्याय समाप्त ॥ प्रथम प्रपाठक का द्वितीय अर्ध समाप्त ॥
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