Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 813
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
6
त्वा꣢मि꣣दा꣡ ह्यो नरोऽपी꣢꣯प्यन्वज्रि꣣न्भू꣡र्ण꣢यः । स꣡ इ꣢न्द्र꣣ स्तो꣡म꣢वाहस इ꣣ह꣢ श्रु꣣ध्यु꣢प꣣ स्व꣡स꣢र꣣मा꣡ ग꣢हि ॥८१३॥
स्वर सहित पद पाठत्वा꣢म् । इ꣣दा꣢ । ह्यः । न꣡रः꣢꣯ । अ꣡पी꣢꣯प्यन् । व꣢ज्रिन् । भू꣡र्ण꣢꣯यः । सः । इ꣣न्द्र । स्तो꣡म꣢꣯वाहसः । स्तो꣡म꣢꣯ । वा꣣हसः । इह꣢ । श्रु꣣धि । उ꣡प꣢꣯ । स्व꣡स꣢꣯रम् । आ । ग꣣हि ॥८१३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामिदा ह्यो नरोऽपीप्यन्वज्रिन्भूर्णयः । स इन्द्र स्तोमवाहस इह श्रुध्युप स्वसरमा गहि ॥८१३॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वाम् । इदा । ह्यः । नरः । अपीप्यन् । वज्रिन् । भूर्णयः । सः । इन्द्र । स्तोमवाहसः । स्तोम । वाहसः । इह । श्रुधि । उप । स्वसरम् । आ । गहि ॥८१३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 813
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ३०२ क्रमाङ्क पर परमेश्वर और राजा के पक्ष में की गयी थी। यहाँ विद्वान् का विषय वर्णित किया जा रहा है।
पदार्थ -
हे (वज्रिन्) दोषों का वर्णन करनेवाले विद्वन् ! (त्वाम् इत्) आपको ही (भूर्णयः) वैभवशाली (नरः) लोग (इदा) इस काल में और (ह्यः) अतीत काल में (अपीप्यन्) उपहार आदि प्रदान कर बढ़ाते हैं और बढ़ाते रहे हैं। (सः) वह, हे (इन्द्र) विद्या के ऐश्वर्य से युक्त विद्वन् ! (स्तोमवाहसः) आपके प्रति स्तोत्र या पदार्थसमूह पहुँचानेवाले हम लोगों को, अर्थात् हमारे निवेदन को (इह) यहाँ (श्रुधि) आप सुनिए और सुनकर हमारा आतिथ्य ग्रहण करने तथा हमें उपदेश देने के लिए (स्वसरम्) हमारे घर (उप आगहि) आइए ॥१॥
भावार्थ - सब उन्नति चाहनेवाले लोगों को चाहिए कि विद्वानों का सत्कार करें और विद्वानों को भी चाहिए कि अध्ययन की हुई सब विद्याएँ उन्हें दें ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें