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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 819
ऋषिः - नहुषो मानवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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स꣡मु꣢ प्रि꣣या꣡ अ꣢नूषत꣣ गा꣢वो꣣ म꣡दा꣢य꣣ घृ꣡ष्व꣢यः । सो꣡मा꣢सः कृण्वते प꣣थः꣡ पव꣢꣯मानास꣣ इ꣡न्द꣢वः ॥८१९॥

स्वर सहित पद पाठ

सम् । उ꣣ । प्रियाः꣢ । अ꣣नूषत । गा꣡वः꣢꣯ । म꣡दा꣢꣯य । घृ꣡ष्व꣢꣯यः । सो꣡मा꣢꣯सः । कृ꣣ण्वते । पथः꣢ । प꣡व꣢꣯मानासः । इ꣡न्द꣢꣯वः ॥८१९॥


स्वर रहित मन्त्र

समु प्रिया अनूषत गावो मदाय घृष्वयः । सोमासः कृण्वते पथः पवमानास इन्दवः ॥८१९॥


स्वर रहित पद पाठ

सम् । उ । प्रियाः । अनूषत । गावः । मदाय । घृष्वयः । सोमासः । कृण्वते । पथः । पवमानासः । इन्दवः ॥८१९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 819
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
प्रथम—ब्रह्मानन्द-रस के पक्ष में। (प्रियाः) परमेश्वर के प्रिय, (घृष्वयः) मानसिक संघर्ष में संलग्न (गावः) स्तोताजन (मदाय) आनन्द-प्राप्ति के लिए (सम् उ अनूषत) भली-भाँति परमेश्वर की स्तुति करते हैं। उसकी स्तुति से प्राप्त (इन्दवः) दीप्त या सराबोर करनेवाले (सोमासः) ब्रह्मानन्द-रस (पवमानासः) स्तोताओं को पवित्र करते हुए, उनके सम्मुख (पथः) कर्तव्य-मार्गों को (कृण्वते) स्पष्ट कर देते हैं ॥ द्वितीय—गुरुओं के पक्ष में। (प्रियाः) प्रिय, मधुर, (घृष्वयः) घर्षण अर्थात् पुनः-पुनः अभ्यास से उज्ज्वल (गावः) शिष्यों की वाणियाँ (मदाय) आनन्द-प्राप्ति के लिए (सम् उ अनूषत) गुरुओं की सम्यक् स्तुति करती हैं। वे (इन्दवः) ज्ञान से दीप्त (सोमासः) ज्ञानप्रेरक गुरुजन (पवमानासः) शिष्यों को पवित्र करते हुए, उनके सम्मुख (पथः) गन्तव्य मार्गों को (कृण्वते) स्पष्ट कर देते हैं ॥२॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि परमात्मा की और गुरुजनों की भली-भाँति स्तुति करके आनन्द-रस तथा ज्ञान-रस को दुहकर उसके पान से स्वयं को पवित्र करके सन्मार्ग का अनुसरण करें ॥२॥

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