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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 821
ऋषिः - सिकता निवावरी
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
6
वृ꣡षा꣢ मती꣣नां꣡ प꣢वते विचक्ष꣣णः꣢꣫ सोमो꣣ अ꣡ह्नां꣢ प्रतरी꣣तो꣡षसां꣢꣯ दि꣣वः꣢ । प्रा꣣णा꣡ सिन्धू꣢꣯नां क꣢ल꣡शा꣢ꣳ अचिक्रद꣣दि꣡न्द्र꣢स्य꣣ हा꣡र्द्या꣢वि꣣श꣡न्म꣢नी꣣षि꣡भिः꣢ ॥८२१॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡षा꣢꣯ । म꣣तीना꣢म् । प꣣वते । विचक्षणः꣣ । वि꣣ । चक्षणः꣣ । सो꣡मः꣢꣯ । अ꣡ह्ना꣢꣯म् । अ । ह्ना꣣म् । प्रतरीता꣢ । प्र꣣ । तरीता꣢ । उ꣣ष꣡सा꣢म् । दि꣣वः꣢ । प्रा꣣णा꣡ । प्र꣣ । आना꣢ । सि꣡न्धू꣢꣯नाम् । क꣣ल꣡शा꣢न् । अ꣣चिक्रदत् । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । हा꣡र्दि꣢꣯ । आ꣣विश꣢न् । आ꣢ । विश꣢न् । म꣣नीषि꣡भिः꣢ ॥८२१॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा मतीनां पवते विचक्षणः सोमो अह्नां प्रतरीतोषसां दिवः । प्राणा सिन्धूनां कलशाꣳ अचिक्रददिन्द्रस्य हार्द्याविशन्मनीषिभिः ॥८२१॥
स्वर रहित पद पाठ
वृषा । मतीनाम् । पवते । विचक्षणः । वि । चक्षणः । सोमः । अह्नाम् । अ । ह्नाम् । प्रतरीता । प्र । तरीता । उषसाम् । दिवः । प्राणा । प्र । आना । सिन्धूनाम् । कलशान् । अचिक्रदत् । इन्द्रस्य । हार्दि । आविशन् । आ । विशन् । मनीषिभिः ॥८२१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 821
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ५५९ पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात की जा चुकी है। यहाँ बहुत से सोमों का परिचय दिया जा रहा है।
पदार्थ -
(सोमः) एक सोम (विचक्षणः) विद्वान आचार्य है, जो (मतीनाम्) ज्ञानों का (वृषा) बरसानेवाला होता हुआ (पवते)शिष्यों को पवित्र करता है। द्वितीय सोम परमेश्वर है, जो (अह्नाम्) दिनों का, (उषसाम्) उषाओं का और (दिवः) सूर्य का (प्रतरीता) उत्तम रूप से तरानेवाला अर्थात् व्यतीत करानेवाला है। तृतीय सोम चन्द्रमा है, जो (सिन्धूनाम्) समुद्रों का (प्राणा) बढ़ानेवाला होता है। चौथा सोम सोमौषधि का रस है, जो (कलशान्) द्रोणकलशों को (अचिक्रदत्) शब्दायमान करता है। पाँचवाँ सोम ब्रह्मानन्द-रस है, जो (मनीषिभिः) मन से किये जाते हुए स्तोत्रों के साथ (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (हार्दि) हृदय में (आ विशत्) प्रविष्ट होता है ॥१॥
भावार्थ - वेदों में सोम शब्द के बहुत से वाच्यार्थ होते है, जो प्रकरणानुसार वेदज्ञ विद्वानों को समझ लेने चाहिएँ ॥१॥
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