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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 851
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - मरुतः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
आ꣡दह꣢꣯ स्व꣣धा꣢꣫मनु꣣ पु꣡न꣢र्गर्भ꣣त्व꣡मे꣢रि꣣रे꣢ । द꣡धा꣢ना꣣ ना꣡म꣢ य꣣ज्ञि꣡य꣢म् ॥८५१॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢त् । अ꣡ह꣢꣯ । स्व꣣धा꣢म् । स्व꣣ । धा꣢म् । अ꣡नु꣢꣯ । पु꣡नः꣢꣯ । ग꣣र्भत्व꣢म् । ए꣣रिरे꣢ । आ꣣ । इरिरे꣢ । द꣡धा꣢꣯नाः । ना꣡म꣢꣯ । य꣣ज्ञि꣡य꣢म् ॥८५१॥
स्वर रहित मन्त्र
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे । दधाना नाम यज्ञियम् ॥८५१॥
स्वर रहित पद पाठ
आत् । अह । स्वधाम् । स्व । धाम् । अनु । पुनः । गर्भत्वम् । एरिरे । आ । इरिरे । दधानाः । नाम । यज्ञियम् ॥८५१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 851
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में जीवात्मा के पुनर्जन्म का विषय है।
पदार्थ -
(आत् अह) देहत्याग के अनन्तर सूक्ष्म शरीर में समाविष्ट ये प्राण पूर्वजन्मकृत कर्मों के संस्कारों के अनुसार (स्वधाम् अनु) भोग को लक्ष्य करके, जीवात्मासहित (यज्ञियम्) देहयज्ञ के सञ्चालन-योग्य (नाम) कर्म को (दधानाः) धारण करते हुए (पुनः) पूर्वजन्म के समान फिर भी (गर्भत्वम्) माता के गर्भ में स्थिति को (एरिरे) प्राप्त करते हैं ॥२॥
भावार्थ - पाँच प्राण, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच सूक्ष्मभूत, मन और बुद्धि यह सत्रह लिङ्गोंवाला सूक्ष्मशरीर जीवात्मा के साथ मृत्यु के बाद भी रहता है। पूर्वजन्म के कर्मों के संस्कारानुसार फल भोगने के लिए सूक्ष्मशरीर के साथ जीवात्मा पुनर्जन्म ग्रहण करने के लिए माता के गर्भ में प्रवेश करता है ॥२॥
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