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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1010
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
आ꣢दी꣣म꣢श्वं꣣ न꣡ हेता꣢꣯र꣣म꣡शू꣢शुभन्न꣣मृ꣡ता꣢य । म꣢धो꣣ र꣡स꣢ꣳ सध꣣मा꣡दे꣢ ॥१०१०॥
स्वर सहित पद पाठआत् । ई꣣म् । अ꣡श्व꣢꣯म् । न । हे꣡ता꣢꣯रम् । अ꣡शू꣢꣯शुभन् । अ꣣मृ꣡ता꣢य । अ꣣ । मृ꣡ता꣢꣯य । म꣡धोः꣢꣯ । र꣡स꣢꣯म् । स꣣धमा꣡दे꣢ । स꣣ध । मा꣡दे꣢꣯ ॥१०१०॥
स्वर रहित मन्त्र
आदीमश्वं न हेतारमशूशुभन्नमृताय । मधो रसꣳ सधमादे ॥१०१०॥
स्वर रहित पद पाठ
आत् । ईम् । अश्वम् । न । हेतारम् । अशूशुभन् । अमृताय । अ । मृताय । मधोः । रसम् । सधमादे । सध । मादे ॥१०१०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1010
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(आत्) अनन्तर—पुनः (सधमादे) साथ होकर—परमात्मा के साथ होकर जहाँ माद—हर्ष आनन्द अनुभव किया जाता है उस हृदयप्रदेश में (मधोः) मधुमय—सोम—शान्त परमात्मा के (रसम्-अश्वं हेतारं न) व्यापनशील तथा प्रेरणा देने वाले आनन्दरस को सम्प्रति88 (अमृताय) अमृत—मोक्ष पाने के लिए (अशूशुभन्) प्राप्त कर प्रशंसित करते हैं स्तुत करते हैं*89॥३॥
टिप्पणी -
[*88. “न सम्प्रत्यर्थे” [निरु॰ ६.८]।] [*89. “शुम्भ भाषणे” [भ्वादि॰]।]
विशेष - <br>
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