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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1053
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
अ꣣꣬भ्य꣢꣯र्ष स्वायुध꣣ सो꣡म꣢ द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सꣳ र꣣यि꣢म् । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । अ꣣र्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सो꣡म꣢꣯ । द्वि꣣ब꣡र्ह꣢सम् । द्वि꣣ । ब꣡र्ह꣢꣯सम् । र꣣यि꣢म् । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५३॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यर्ष स्वायुध सोम द्विबर्हसꣳ रयिम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५३॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । अर्ष । स्वायुध । सु । आयुध । सोम । द्विबर्हसम् । द्वि । बर्हसम् । रयिम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1053
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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पदार्थ -
(स्वायुध सोम) हे सु—शोभन—सर्वोत्तम आयु—मोक्ष की आयु को धारण कराने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू उपासकों के लिए (द्विबर्हसं रयिम्) दो लोकों में बढ़ कर ऐश्वर्य—अभ्युदय और निःश्रेयस को (अभ्यर्ष) प्रेरित कर—प्राप्त करा। शेष पूवर्वत्॥७॥
विशेष - <br>
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