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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1054
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣भ्य꣢३र्षा꣡न꣢पच्युतो꣣ वा꣡जि꣢न्त्स꣣म꣡त्सु꣢ सा꣣स꣢हिः । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । अ꣣र्ष । अ꣡न꣢꣯पच्युतः । अ꣢न् । अ꣣पच्युतः । वा꣡जि꣢꣯न् । स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । सा꣣सहिः꣢ । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५४॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्य३र्षानपच्युतो वाजिन्त्समत्सु सासहिः । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५४॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । अर्ष । अनपच्युतः । अन् । अपच्युतः । वाजिन् । समत्सु । स । मत्सु । सासहिः । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1054
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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पदार्थ -
(वाजिन्) हे अमृत अन्नभोग के स्वामिन्—दाता (अनपच्युतः) एक रस रहने वाला तथा जिससे उपासक अपच्युत नहीं होता तथा (सासहिः) स्वयं सहनशील तथा उपासकों को सहनशील बनाने वाला (समत्सु) तू हमें काम आदि के साथ संघर्ष अवसरों पर अध्यात्म हर्ष आनन्द प्रसङ्गों में*29 (अभ्यर्ष) प्राप्त हो। शेष पूर्ववत्॥८॥
टिप्पणी -
[*29. “समदो वा मदतेः” [निरु॰ ९.१६]।]
विशेष - <br>
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