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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1085
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣢ घ꣣ त्वा꣢वान्꣣ त्म꣡ना꣢ यु꣣क्तः꣢ स्तो꣣तृ꣡भ्यो꣢ धृष्णवीया꣣नः꣢ । ऋ꣣णो꣢꣫रक्षं꣣ न꣢ च꣣꣬क्र्योः꣢꣯ ॥१०८५॥
स्वर सहित पद पाठआ । घ꣣ । त्वा꣡वा꣢꣯न् । त्म꣡ना꣢꣯ । यु꣣क्तः꣢ । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । धृ꣣ष्णो । ईयानः꣢ । ऋ꣣णोः꣢ । अ꣡क्ष꣢꣯म् । न । च꣣क्र्योः꣢ ॥१०८५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ घ त्वावान् त्मना युक्तः स्तोतृभ्यो धृष्णवीयानः । ऋणोरक्षं न चक्र्योः ॥१०८५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । घ । त्वावान् । त्मना । युक्तः । स्तोतृभ्यः । धृष्णो । ईयानः । ऋणोः । अक्षम् । न । चक्र्योः ॥१०८५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1085
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(धृष्णो) हे काम आदि दोषों के धर्षक—धकेलनेवाले इन्द्र—ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (त्वावान् घ) तुझ जैसा*69 तू ही है (स्तोतृभ्यः-ईयानः) स्तुतिकर्ताओं द्वारा प्रार्थ्यमान—प्रार्थना किया जाता हुआ उनके लिए उनके साथ (त्मना युक्तः) अपने स्वरूप से युक्त हुआ (चक्र्योः-अक्षं न) रथ के पहियों में अक्ष—धुरा दण्ड के समान (आ-ऋणोः) समन्तरूप से उन्हें गति दे*70 मोक्ष की ओर ले जा॥२॥
टिप्पणी -
[*69. “युष्मदस्मद्भ्यां छन्दसि सादृश्य उपसंख्यानम्” [अष्टा॰ ५.२.९४ वा॰] इति मतुप्।] [*70. “ऋणोति गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४]।]
विशेष - <br>
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