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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1129
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प्र꣢꣫ धारा꣣ म꣡धो꣢ अग्रि꣣यो꣢ म꣣ही꣢र꣣पो꣡ वि गा꣢꣯हते । ह꣣वि꣢र्ह꣣विः꣢षु꣣ व꣡न्द्यः꣢ ॥११२९॥
स्वर सहित पद पाठप्र । धा꣡रा꣢꣯ । म꣡धोः꣢꣯ । अ꣣ग्रियः꣢ । म꣣हीः꣢ । अ꣣पः꣢ । वि । गा꣣हते । हविः꣢ । ह꣣वि꣡ष्षु꣢ । व꣡न्द्यः꣢꣯ ॥११२९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र धारा मधो अग्रियो महीरपो वि गाहते । हविर्हविःषु वन्द्यः ॥११२९॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । धारा । मधोः । अग्रियः । महीः । अपः । वि । गाहते । हविः । हविष्षु । वन्द्यः ॥११२९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1129
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(मधोः-अग्रियः-धारा) मधुर सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा की श्रेष्ठ आनन्दधाराएँ (महीः-अपः-विगाहते) महन्त आप्त जनों*36 की ओर विगाहन करती हैं प्राप्त होती हैं (हविःषु हविः-वन्द्यः) सब हवियों में यह हवि स्तुतियोग्य है॥२॥
टिप्पणी -
[*36. “मनुष्या वा आपश्चन्द्राः” [श॰ ७.३.१.२०]।]
विशेष - <br>
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