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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 131
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣡पि꣢बत्क꣣द्रु꣡वः꣢ सु꣣त꣡मिन्द्रः꣢꣯ स꣣ह꣡स्र꣢बाह्वे । त꣡त्रा꣢ददिष्ट꣣ पौ꣡ꣳस्य꣢म् ॥१३१॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡पि꣢꣯बत् । क꣣द्रु꣡वः꣢ । क꣣त् । द्रु꣡वः꣢꣯ । सु꣣त꣢म् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢बाह्वे । स꣣ह꣡स्र꣢ । बा꣣ह्वे । त꣡त्र꣢꣯ । अ꣣ददिष्ट । पौँ꣡स्य꣢꣯म् । ॥१३१॥


स्वर रहित मन्त्र

अपिबत्कद्रुवः सुतमिन्द्रः सहस्रबाह्वे । तत्राददिष्ट पौꣳस्यम् ॥१३१॥


स्वर रहित पद पाठ

अपिबत् । कद्रुवः । कत् । द्रुवः । सुतम् । इन्द्रः । सहस्रबाह्वे । सहस्र । बाह्वे । तत्र । अददिष्ट । पौँस्यम् । ॥१३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 131
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2;
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पदार्थ -
(इन्द्रः) परमात्मा (कद्रुवः) ईषत् गति वाले बाधाओं से निर्बल दीन बने जन के (सुतम्-अपिबत्) अन्दर से निष्पन्न हावभावपूर्ण उपासनारस को सेवन करता है—स्वीकार करता है। तो (सहस्रबाह्वे) बहुत प्रकार बाधा—पीड़ा पहुँचाने वाली प्रवृत्तियों वाले के लिये—उसके हननार्थ (तत्र) उस दीन जन के अन्दर (पौंस्यम्) पुरुषार्थ को (आददिष्ट) अति सर्जित करता है—देता है—प्रेरित करता है।

भावार्थ - जब दीन—बाधाओं से पीड़ितजन अपने अन्दर से हावभावपूर्ण स्तुतिप्रार्थना उपासनाप्रवाह परमात्मा के प्रति समर्पित करता है तो वह स्वीकार कर उन बाधाओं को हटाने के लिये उस दीन जन में पौरुष को प्रेरित कर देता है॥७॥

विशेष - ऋषिः—त्रिशोकः (तीनों—ज्ञानत्रयी उपासना से प्राप्त दीप्ति वाला जन*15)॥<br>

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