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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1435
ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

प꣡व꣢स्व वृ꣣ष्टि꣢꣫मा सु नो꣣ऽपा꣢मू꣣र्मिं꣢ दि꣣व꣡स्परि꣢꣯ । अ꣣यक्ष्मा꣡ बृ꣢ह꣣ती꣡रिषः꣢꣯ ॥१४३५॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । वृ꣣ष्टि꣢म् । आ । सु । नः꣣ । अपा꣢म् । ऊ꣣र्मि꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । अ꣣यक्ष्माः꣢ । अ꣣ । यक्ष्माः꣢ । बृ꣣हतीः꣢ । इ꣡षः꣢꣯ ॥१४३५॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व वृष्टिमा सु नोऽपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा बृहतीरिषः ॥१४३५॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । वृष्टिम् । आ । सु । नः । अपाम् । ऊर्मिम् । दिवः । परि । अयक्ष्माः । अ । यक्ष्माः । बृहतीः । इषः ॥१४३५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1435
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(नः) हे सोम—परमात्मन्! तू हम उपासकों के लिये (वृष्टिम्-आपवस्व) सुखवृष्टि को ले आ—समन्तरूप से प्राप्त करा (अपाम्-ऊर्मिंदिवस्परि सु) हम मुमुक्षुजनों की१ स्तुतितरङ्ग को अमृतधाम में२ पहुँचा, इस प्रकार (बृहतीः-इषः) ऊँची कामनाएँ-कमनीय वस्तुएँ (अयक्ष्माः) रोग से—क्षय से रहित हों॥१॥

विशेष - ऋषिः—कविः (स्तुतिवक्ता उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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