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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1631
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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अ꣡ध꣢ क्ष꣣पा꣡ परि꣢꣯ष्कृतो꣣ वा꣡जा꣢ꣳ अ꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯हसे । य꣡दी꣢ वि꣣व꣡स्व꣢तो꣣ धि꣢यो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हि꣣न्व꣢न्ति꣣ या꣡त꣢वे ॥१६३१॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ध꣢꣯ । क्ष꣣पा꣢ । प꣡रि꣢꣯ष्कृतः । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣तः । वा꣡जा꣢꣯न् । अ꣡भि꣢ । प्र । गा꣣हसे । य꣡दि꣢꣯ । वि꣣व꣡स्व꣢तः । वि꣣ । व꣡स्व꣢꣯तः । धि꣡यः꣢꣯ । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्व꣡न्ति꣢ । या꣡त꣢꣯वे ॥१६३१॥


स्वर रहित मन्त्र

अध क्षपा परिष्कृतो वाजाꣳ अभि प्र गाहसे । यदी विवस्वतो धियो हरिꣳ हिन्वन्ति यातवे ॥१६३१॥


स्वर रहित पद पाठ

अध । क्षपा । परिष्कृतः । परि । कृतः । वाजान् । अभि । प्र । गाहसे । यदि । विवस्वतः । वि । वस्वतः । धियः । हरिम् । हिन्वन्ति । यातवे ॥१६३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1631
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(क्षपा-अध) रात्रि के२ अनन्तर उषाकाल—प्रभातवेला में (परिष्कृतः) उपासक द्वारा भूषित पूजित स्तुत हुआ तू परमात्मन्! (वाजान्-अभि प्रगाहसे) अमृत अन्नभोगों को३ प्राप्त कराता है (यदी विवस्वतः-धियः) यदि उपासकजन४ की स्तुतिवाणियाँ५ (हरि यातवे हिन्वन्ति) तुझ दुःखहर्ता परमात्मा को उपासक के प्रति प्राप्त होने को प्रेरित करती हैं—खींचती हैं प्रेरणा देती हैं॥१॥

विशेष - ऋषिः—काश्यपौ रेभसूनू ऋषी (द्रष्टा से सम्बन्ध स्तोता और साक्षात्कर्ता उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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