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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1700
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
प꣡व꣢माना दि꣣व꣢꣫स्पर्य꣣न्त꣡रि꣢क्षादसृक्षत । पृ꣣थिव्या꣢꣫ अधि꣣ सा꣡न꣢वि ॥१७००॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानाः । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षात् । अ꣣सृक्षत । पृथिव्याः꣣ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡न꣢꣯वि ॥१७००॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि ॥१७००॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानाः । दिवः । परि । अन्तरिक्षात् । असृक्षत । पृथिव्याः । अधि । सानवि ॥१७००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1700
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(पवमानाः) आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला परमात्मा (दिवः-अन्तरिक्षात् परि) द्युलोक में अन्तरिक्षलोक में१ (पृथिव्याः-अधिसानवि) पृथिवीलोक में वर्तमान इनके सम्भजन स्थान—उपासनास्थान—आत्मा के उपकरण मूर्धा२ हृदय३ और शरीर४ में कर्मेन्द्रियगण में (असृक्षत) उपासना द्वारा पहुँचता है जिससे क्रमशः सद्विचार सद्भाव सदाचार प्रवाहित होता रहता है॥२॥
विशेष - <br>
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