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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1842
य꣢द꣣दो꣡ वा꣢त ते गृ꣣हे꣢३꣱ऽमृ꣢तं꣣ नि꣡हि꣢तं꣣ गु꣡हा꣢ । त꣡स्य꣢ नो देहि जी꣣व꣡से꣢ ॥१८४२॥
स्वर सहित पद पाठय꣢त् । अ꣣दः꣢ । वा꣣त । ते । गृहे꣢ । अ꣣मृ꣡त꣢म् । अ꣣ । मृ꣡त꣢꣯म् । नि꣡हि꣢꣯तम् । नि । हि꣣तम् । गु꣡हा꣢꣯ । त꣡स्य꣢꣯ । नः꣣ । धेहि । जीव꣡से꣢ ॥१८४२॥
स्वर रहित मन्त्र
यददो वात ते गृहे३ऽमृतं निहितं गुहा । तस्य नो देहि जीवसे ॥१८४२॥
स्वर रहित पद पाठ
यत् । अदः । वात । ते । गृहे । अमृतम् । अ । मृतम् । निहितम् । नि । हितम् । गुहा । तस्य । नः । धेहि । जीवसे ॥१८४२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1842
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(वात) हे विभुगतिमन् परमात्मन्! (ते गृहे) तेरे घर में—मोक्षधाम में (यत्-अदः) जो वह अमुक (अमृतम्) अमृतानन्द (गुहा निहितम्) सूक्ष्म स्थिति में छिपा हुआ रखा है (तस्य नः-जीवसे धेहि) उसे हमारे जीवन—दीर्घ जीवन अमर जीवन के लिये धारण करा॥३॥
विशेष - <br>
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