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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 434
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - पदपङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣢ग्ने꣣ त꣢म꣣द्या꣢श्वं꣣ न꣢꣫ स्तोमैः꣣ क्र꣢तुं꣣ न꣢ भ꣣द्र꣡ꣳ हृ꣢दि꣣स्पृ꣡श꣢म् । ऋ꣣ध्या꣡मा꣢ त꣣ ओ꣡हैः꣣ ॥४३४॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । तम् । अ꣣द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । अ꣡श्व꣢꣯म् । न । स्तो꣡मैः꣢꣯ । क्र꣡तु꣢꣯म् । न । भ꣣द्र꣢म् । हृ꣣दिस्पृ꣡शम् । हृ꣣दि । स्पृ꣡श꣢꣯म् । ऋ꣣ध्या꣡म꣢ । ते꣣ । ओ꣡हैः꣢꣯ ॥४३४॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने तमद्याश्वं न स्तोमैः क्रतुं न भद्रꣳ हृदिस्पृशम् । ऋध्यामा त ओहैः ॥४३४॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । तम् । अद्य । अ । द्य । अश्वम् । न । स्तोमैः । क्रतुम् । न । भद्रम् । हृदिस्पृशम् । हृदि । स्पृशम् । ऋध्याम । ते । ओहैः ॥४३४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 434
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन्! (अद्य) आज शीघ्र ही—अभी (तम्) उस प्रसिद्ध तुझ—(अश्वं न) घोड़े की भाँति संसारवहनकर्ता—(हृदिस्पृशम्) हृदयङ्गम को (क्रतुं न भद्रम्) तथा यज्ञ के समान कल्याणकर भजनीय को “यज्ञः-क्रतुः” [मै॰ १.४.१४] (ओहैः-स्तोमैः) समन्तरूप से ऊहने वाले—स्मरणीय स्तुतिसमूहों से (ते-ऋध्याम) हम तेरे उपासक अपने अन्दर साधें—धारण करें।

भावार्थ - घोड़े के समान संसारवहनकर्ता और यज्ञ के समान कल्याणकारी भजनीय हृदयङ्गम परमात्मा को स्मरणीय स्तुति मन्त्रों से अपने हृदय में साधें, धारण करें॥८॥

विशेष - ऋषिः—वामदेवः (वननीय उपासनीय देव जिसका है)॥ देवता—अग्निः (प्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥<br>

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