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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 597
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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इ꣢न्द्र꣣ इ꣢꣫द्धर्योः꣣ स꣢चा꣣ स꣡म्मि꣢श्ल꣣ आ꣡ व꣢चो꣣यु꣡जा꣢ । इ꣡न्द्रो꣢ व꣣ज्री꣡ हि꣢र꣣ण्य꣡यः꣢ ॥५९७॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रः꣢꣯ । इत् । ह꣡र्योः꣢꣯ । स꣡चा꣢꣯ । स꣡म्मि꣢꣯श्लः । सम् । मि꣣श्लः । आ꣢ । व꣣चोयु꣡जा꣢ । व꣣चः । यु꣡जा꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । व꣣ज्री꣢ । हि꣣रण्य꣡यः꣢ ॥५९७॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र इद्धर्योः सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा । इन्द्रो वज्री हिरण्ययः ॥५९७॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः । इत् । हर्योः । सचा । सम्मिश्लः । सम् । मिश्लः । आ । वचोयुजा । वचः । युजा । इन्द्रः । वज्री । हिरण्ययः ॥५९७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 597
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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पदार्थ -
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (वचोयुजा हर्योः) अपने वचन—आदेश या प्रार्थना से युक्त होने वाले दुःखापहर्ता और सुखाहर्ता दोनों ज्योति और स्नेह या कृपा और प्रसाद का (सचा-आमिश्लः) समन्तरूप से उपासक में मेल कराने वाला है तथा (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (वज्री हिरण्ययः) ओजस्वी “वज्रो वा ओजः” [श॰ ८.४.१.२०] और सुशोभन है।
भावार्थ - परमात्मा के आदेश से या उपासक की प्रार्थना से युक्त होने वाले ज्योति और स्नेह या कृपा और प्रसाद का साथ सम्यक् मिश्रण करनेवाला ऐश्वर्यवान् परमात्मा है और वह अपने रूप में ओजस्वी तथा सुशोभन है, उसकी स्तुति करनी चाहिए॥३॥
विशेष - ऋषिः—मधुच्छन्दा वैश्वामित्र (सर्वमित्र आचार्य से सम्बद्ध मधुर इच्छा वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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