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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 616
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - अग्निः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
3
व꣣स꣡न्त इन्नु रन्त्यो꣢꣯ ग्री꣣ष्म꣡ इन्नु रन्त्यः꣢꣯ । व꣣र्षा꣡ण्यनु꣢꣯ श꣣र꣡दो꣢ हेम꣣न्तः꣡ शिशि꣢꣯र꣣ इन्नु꣡ रन्त्यः꣢꣯ ॥६१६
स्वर सहित पद पाठव꣣सन्तः꣢ । इत् । नु । र꣡न्त्यः꣢꣯ । ग्री꣣ष्मः꣢ । इत् । नु । र꣡न्त्यः꣢꣯ । व꣣र्षा꣡णि꣢ । अ꣡नु꣢꣯ । श꣣र꣡दः꣢ । हे꣣मन्तः꣢ । शि꣡शि꣢꣯रः । इत् । र꣡न्त्यः꣢꣯ ॥६१६॥
स्वर रहित मन्त्र
वसन्त इन्नु रन्त्यो ग्रीष्म इन्नु रन्त्यः । वर्षाण्यनु शरदो हेमन्तः शिशिर इन्नु रन्त्यः ॥६१६
स्वर रहित पद पाठ
वसन्तः । इत् । नु । रन्त्यः । ग्रीष्मः । इत् । नु । रन्त्यः । वर्षाणि । अनु । शरदः । हेमन्तः । शिशिरः । इत् । रन्त्यः ॥६१६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 616
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(वसन्तः-इत्-नु रन्त्यः) हे प्रकाशस्वरूप अग्रणेता परमात्मन्! मेरा प्राण “प्राण एव वसन्तः” [जै॰ २.५१] हाँ शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो प्राणायामादि द्वारा (गीष्मः-इत्-नु रन्त्यः) मेरी वाक्—वाणी “वाग्ग्रीष्मः” [जै॰ २.५०] हाँ शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो स्तुति द्वारा (वर्षाणि-अनु) साथ ही मेरी आँख “चक्षुर्वषाः” [जै॰ २.५१] हाँ शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो तेरे दर्शन की उत्सुकता द्वारा तेरे रचे जगत् में तेरी कला को देख देखकर तेरे पाठ पढ़-पढ़कर (शरदः) मेरा श्रोत्र—कान “श्रोत्रं शरदः” [जै॰ २.५१] हाँ शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो तेरे सम्बन्ध में श्रवण द्वारा (हेमन्तः) मेरा मन “मनो हेमन्तः” [जै॰ २.५१] हाँ शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो तेरे मनन चिन्तन द्वारा (शिशिरः-इत्-नु रन्त्यः) मेरा प्रतिष्ठान नाभि के नीचे का अङ्ग “शिशिरं प्रतिष्ठानम्” [मै॰ ४.९.१८] शीघ्र शीघ्र—बार बार तेरे में रमण करने योग्य हो, आसन सदाचरण द्वारा।
भावार्थ - परमात्मन्! मेरा प्राण प्राणायाम द्वारा, मेरा मन मनन द्वारा, मेरा कान तेरे श्रवण द्वारा, मेरी आँख तेरे दर्शन एवं वस्तु वस्तु में तेरी छवि देखे, तेरे पाठ पढ़ मेरी वाणी तेरी स्तुति गुणगान कर मेरा नाभि का अधोभाग आसन एवं सदाचरण द्वारा तेरे में सदा बार बार समर्पण करने योग्य रहे॥२॥
विशेष - ऋषिः—वामदेवः (वननीय परमात्मदेव वाला)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—पंक्तिः॥<br>
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