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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 744
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣡नु꣢ प्र꣣त्न꣡स्यौक꣢꣯सो हु꣣वे꣡ तु꣢विप्र꣣तिं꣡ नर꣢꣯म् । यं꣢ ते꣣ पू꣡र्वं꣢ पि꣣ता꣢ हु꣣वे꣢ ॥७४४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣नु꣢꣯ । प्र꣣त्न꣡स्य꣢ । ओ꣡क꣢꣯सः । हु꣣वे꣢ । तु꣣विप्रति꣢म् । तु꣣वि । प्रति꣢म् । न꣡र꣢꣯म् । यम् । ते꣣ । पू꣡र्व꣢꣯म् । पि꣣ता꣢ । हु꣣वे꣢ ॥७४४॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु प्रत्नस्यौकसो हुवे तुविप्रतिं नरम् । यं ते पूर्वं पिता हुवे ॥७४४॥
स्वर रहित पद पाठ
अनु । प्रत्नस्य । ओकसः । हुवे । तुविप्रतिम् । तुवि । प्रतिम् । नरम् । यम् । ते । पूर्वम् । पिता । हुवे ॥७४४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 744
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(प्रत्नस्य-ओकसः) दिव् स्थान “असौ वै द्युलोकः प्रत्नम्” [मै॰ १.५.५] “त्रिपादस्यामृतं दिवि” [ऋ॰ १०.९०.३] मोक्ष स्थान के (अनु) ऊपर वर्तमान (तुविप्रतिम्) बहुतों के प्रतिपालक—बहुतेरे मुक्तात्माओं को स्वानन्द से पूरण करनेवाले—(नरम्) नेता—स्वामी परमात्मा को (हुवे) मैं आमन्त्रित करता हूँ (यं ते पूर्वं पिता हुवे) जिस “ते-त्वाम् विभक्तिव्यत्ययः” तुझ परमात्मा को पहले भी मेरा पिता आमन्त्रित करता रहा।
भावार्थ - मोक्षधाम पर शासक परमात्मा जोकि बहुतेरे मुक्तात्माओं को स्वानन्द से पूरण करनेवाला है उस नेता को उपासक अपने हृदय में आमन्त्रित करें और परम्परा से अपने पूर्वज ब्रह्मा आदि भी आमन्त्रित करते रहे हैं। परम्परा का आदर्श आचरण अथवा हेतु ग्राह्य है “स पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत” [ऋ॰ १.१.२]॥२॥
विशेष - <br>
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