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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 770
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣡दी꣢ꣳ ह꣣ꣳसो꣡ यथा꣢꣯ ग꣣णं꣡ विश्व꣢꣯स्यावीवशन्म꣣ति꣢म् । अ꣢त्यो꣣ न꣡ गोभि꣢꣯रज्यते ॥७७०॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢त् । ई꣣म् । हꣳसः꣢ । य꣡था꣢꣯ । ग꣣ण꣢म् । वि꣡श्व꣢꣯स्य । अ꣣वीवशत् । मति꣢म् । अ꣡त्यः꣢꣯ । न । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣣ज्यते ॥७७०॥
स्वर रहित मन्त्र
आदीꣳ हꣳसो यथा गणं विश्वस्यावीवशन्मतिम् । अत्यो न गोभिरज्यते ॥७७०॥
स्वर रहित पद पाठ
आत् । ईम् । हꣳसः । यथा । गणम् । विश्वस्य । अवीवशत् । मतिम् । अत्यः । न । गोभिः । अज्यते ॥७७०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 770
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(आत्-ईम्) तो फिर (यथा हंसः-गणम्-अवीवशत्) जैसे हंस अन्य पक्षीगण को अपने श्वेत सुन्दरता आदि गुणों से वश करता है अपेक्षा से प्रशंसापत्र बनता है (विश्वस्य मतिम्) ऐसे यह सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा अपने न्याय दया आनन्द आदि गुणों में संसारभर के मतिमान् जन को ‘अत्र मतुप्प्रत्ययस्य लुक् छान्दसः’ वश करता है स्वप्रभाव में ले आता है तथा (अत्यः-न गोभिः-अज्यते) जैसे अतनशील घोड़ा अन्नाद्यों—दाने चारे आदि से व्यक्त—पुष्ट प्रसन्न किया जाता है ऐसे सोम—परमात्मा भी स्तुतियों से हृदय में साक्षात् किया जाता है ‘उपमेयलुप्तोपमालङ्कारः’।
भावार्थ - हंस जैसे पक्षीगण को अपने गुणों से अभिभूत करता है, मोहित करता है, ऐसे परमात्मा संसार के मतिमान् मात्र को प्रभावित करता है तथा गतिशील घोड़ा जैसे दाने चारे जल से प्रसन्न पुष्ट किया जाता है, ऐसे परमात्मा स्तुतियों से हृदय में साक्षात् किया जाता है॥२॥
विशेष - <br>
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