Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 771
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
आ꣡दीं꣢ त्रि꣣त꣢स्य꣣ यो꣡ष꣢णो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्व꣣न्त्य꣡द्रि꣢भिः । इ꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य पी꣣त꣡ये꣢ ॥७७१॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢त् । ई꣣म् । त्रित꣡स्य꣢ । यो꣡ष꣢꣯णः । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पी꣣त꣡ये꣢ ॥७७१॥
स्वर रहित मन्त्र
आदीं त्रितस्य योषणो हरिꣳ हिन्वन्त्यद्रिभिः । इन्दुमिन्द्राय पीतये ॥७७१॥
स्वर रहित पद पाठ
आत् । ईम् । त्रितस्य । योषणः । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । इन्दुम् । इन्द्राय । पीतये ॥७७१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 771
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
पदार्थ -
(आत्-ईम्) पुनश्च (त्रितस्य) मेधा से तीर्णतम उपासक की “त्रिणस्तीर्णतमो मेधया” [निरु॰ ४.७] (योषणः) योषन्—मिलने वाली—समागम कराने वाली स्तुतियाँ “यू मिश्रणे.....” [अदादि॰] “योषा हि वाक्” [श॰ १.४.४.४] (हरिम्) दुःखापहरण सुखाहरण करने वाले सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा को (अद्रिभिः) आदरणीय श्रद्धा नम्रता आस्तिक भावनाओं से (हिन्वन्ति) प्राप्त करती हैं—प्राप्त कराती हैं ‘अन्तर्गतणिजर्थः’ (इन्द्राय-इन्दुं पीतये) आत्मा के लिए आनन्दपूर्ण परमात्मा का पान कराने के लिए।
भावार्थ - मेधा से उत्कृष्ट बने उपासक की स्तुतियाँ दुःखापहरणकर्ता सुखाहरणकर्ता परमात्मा को श्रद्धा नम्रता आस्तिक भावनाओं के साथ आत्मा के लिए आनन्दरसपूर्ण परमात्मा का पान ज्ञान कराती हैं॥३॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें