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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 91
ऋषिः - अग्निस्तापसः
देवता - विश्वेदेवाः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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सो꣢म꣣ꣳ रा꣡जा꣢नं꣣ व꣡रु꣢णम꣣ग्नि꣢म꣣न्वा꣡र꣢भामहे । आ꣣दित्यं꣢꣫ विष्णु꣣ꣳ सू꣡र्यं꣢ ब्र꣣ह्मा꣡णं꣢ च꣣ बृ꣢ह꣣स्प꣡ति꣢म् ॥९१॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡म꣢꣯म् । रा꣡जा꣢꣯नम् । व꣡रु꣢꣯णम् । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣣न्वा꣡र꣢भामहे । अ꣣नु । आ꣡र꣢꣯भामहे । आ꣣दित्य꣢म् । आ꣣ । दित्य꣢म् । वि꣡ष्णु꣢꣯म् । सू꣡र्य꣢꣯म् । ब्र꣣ह्मा꣡ण꣢म् । च꣣ । बृ꣡हः꣢꣯ । प꣡ति꣢꣯म् ॥९१॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमꣳ राजानं वरुणमग्निमन्वारभामहे । आदित्यं विष्णुꣳ सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् ॥९१॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमम् । राजानम् । वरुणम् । अग्निम् । अन्वारभामहे । अनु । आरभामहे । आदित्यम् । आ । दित्यम् । विष्णुम् । सूर्यम् । ब्रह्माणम् । च । बृहः । पतिम् ॥९१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 91
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(राजानम्) सर्वत्र राजमान—विराजमान (सोमम्) उत्पत्तिकर्ता होने से सोमनामक—(अग्निम्) अग्रणायक होने से अग्निनामक—(आदित्यम्) अदिति—अखण्ड सुखसम्पत्ति—मुक्ति के अधिपति होने से आदित्यनामक—(विष्णुम्) सबमें व्यापक होने से विष्णुनामक—(सूर्यम्) सबके प्रेरक प्रकाशक होने से सूर्यनामक—(ब्रह्माणम्) सृष्टि रचयिता होने से ब्रह्मा नाम वाले (च) और (बृहस्पतिम्) वेदवाणी का रक्षक होने से बृहस्पति नाम वाले परमात्मा को (अन्वारभामहे) अनुष्ठित करें—उपासित करें—उपासना में लावें।
भावार्थ - परमात्मा अपने भिन्न भिन्न गुणों और कर्मों के कारण भिन्न भिन्न नाम से उपासित करने—उपासना में लाने योग्य है, संसार के सोम आदि दिव्य पदार्थों में गुण उस परमात्मा से आते हैं वही उनमें उनके दिव्यगुणों का आधान करने वाला होने से उस उस रूप में देखा जाता है अतः वह उस उस रूप में एवं योगवशात् धर्मवान् होने से वैसा स्मरण करने योग्य है, मनुष्य सांसारिक सोम आदि पदार्थों में ही न फँसा रहे॥१॥
विशेष - छन्दः—अनुष्टुप्॥ स्वरः—गान्धारः। ऋषिः—अग्निस्तापसः (तप से सम्पन्न अग्निसमान तेजस्वी अभ्यासी उपासक)॥ देवताः—विश्वे देवाः (सब देवनामों से प्रसिद्ध परमात्मा के भिन्न भिन्न स्वरूप)॥<br>
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