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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 92
ऋषिः - वामदेव: कश्यप:, असितो देवलो वा देवता - अङ्गिराः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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इ꣣त꣢ ए꣣त꣢ उ꣣दा꣡रु꣢हन्दि꣣वः꣢ पृ꣣ष्ठा꣡न्या रु꣢꣯हन् । प्र꣢ भू꣣र्ज꣢यो꣣ य꣡था꣢ प꣣थो꣡द्यामङ्गि꣢꣯रसो ययुः ॥९२

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣तः꣢ । ए꣣ते꣢ । उ꣣दा꣢रु꣢हन् । उ꣣त् । आ꣡रु꣢꣯हन् । दि꣣वः꣢ । पृ꣣ष्ठा꣡नि꣢ । आ । अ꣣रुहन् । प्र꣢ । भूः꣣ । ज꣡यः꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ । प꣣था꣢ । उत् । द्याम् । अ꣡ङ्गि꣢꣯रसः । य꣣युः ॥९२॥


स्वर रहित मन्त्र

इत एत उदारुहन्दिवः पृष्ठान्या रुहन् । प्र भूर्जयो यथा पथोद्यामङ्गिरसो ययुः ॥९२


स्वर रहित पद पाठ

इतः । एते । उदारुहन् । उत् । आरुहन् । दिवः । पृष्ठानि । आ । अरुहन् । प्र । भूः । जयः । यथा । पथा । उत् । द्याम् । अङ्गिरसः । ययुः ॥९२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 92
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(एते-अङ्गिरसः) ये सोम आदि नाम वाले परमात्मा के उपासक श्रवणशील मननशील निदिध्यासनशील आत्मसमर्पण द्वारा अङ्गी—अङ्गों के स्वामी स्वात्मा को रसीला बनाने वाले योगीजन (इतः-उदारुहन्) इस मर्त्य स्थिति से ऊपर उठ जाते हैं पुनः ऊपर उठते उठते (दिवः पृष्ठानि-आरुहन्) सूर्य की पृष्ठों पर—सूर्य की तेज रश्मियों पर आरूढ़ हो जाते हैं। “तेजो वै पृष्ठानि” [तै॰ सं॰ ५.५.८.१] “सूर्यद्वारेण ते विरजाः प्रयान्ति यत्रामृतः स पुरुषो ह्यव्यय आत्मा” [मुण्डको॰ १.२.११] (द्यां प्रययुः) तेजों रश्मियों द्वारा अमृतधाम को प्रगमन कर जाते हैं प्राप्त हो जाते हैं “द्यौरपराजिता अमृतेन विष्टा” [तै॰ ४.४.५.२] “त्रिपादस्यामृतं दिवि” [ऋ॰ १०.९०.३] (यथा भूर्जयः पथः) जैसे स्वगुणपराक्रमों से भूमण्डल पर जय पाते हुए राजा लोग उत्तम शासन पथों मार्गों को प्राप्त करते हैं।

भावार्थ - सोम आदि नामों से परमात्मा की उपासना करने वाले श्रवण मनन निदिध्यासन परायण उपासकजन अङ्गों के स्वामी आत्मा को रसीला बनाने वाले योगीजन मरणदेह से ऊपर उठकर सूर्य की तेजोरूप रश्मियों पर आरूढ़ हो जाते हैं पुनः अमृतरूप मोक्षधाम को प्राप्त हो जाते हैं जैसे भूमि को जय करते हुए राजा लोग उत्तम शासन पथों—मार्गों को प्राप्त होते हैं॥२॥

विशेष - ऋषिः—वामदेवः (वननीय परमात्मा देव जिसका है ऐसा उपासक)॥ देवताः—विश्वेदेवाः (सब देवनामों से प्रसिद्ध परमात्मा के भिन्न भिन्न स्वरूप)॥<br>

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