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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 956
ऋषिः - त्रय ऋषयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
3
त्वं꣢ नृ꣣च꣡क्षा꣢ असि सोम वि꣣श्व꣢तः꣣ प꣡व꣢मान वृषभ꣣ ता꣡ वि धा꣢꣯वसि । स꣡ नः꣢ पवस्व꣣ व꣡सु꣢म꣣द्धि꣡र꣢ण्यवद्व꣣य꣡ꣳ स्या꣢म꣣ भु꣡व꣢नेषु जी꣣व꣡से꣢ ॥९५६॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नृ꣣च꣡क्षाः꣢ । नृ꣣ । च꣡क्षाः꣢꣯ । अ꣣सि । सोम । विश्व꣡तः꣢ । प꣡व꣢꣯मान । वृ꣣षभः । ता꣢ । वि । धा꣣वसि । सः꣢ । नः꣣ । पवस्व । व꣡सु꣢꣯मत् । हि꣡र꣢꣯ण्यवत् । व꣣य꣢म् । स्या꣣म । भु꣡व꣢꣯नेषु । जी꣣व꣡से꣢ । ॥९५६॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नृचक्षा असि सोम विश्वतः पवमान वृषभ ता वि धावसि । स नः पवस्व वसुमद्धिरण्यवद्वयꣳ स्याम भुवनेषु जीवसे ॥९५६॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नृचक्षाः । नृ । चक्षाः । असि । सोम । विश्वतः । पवमान । वृषभः । ता । वि । धावसि । सः । नः । पवस्व । वसुमत् । हिरण्यवत् । वयम् । स्याम । भुवनेषु । जीवसे । ॥९५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 956
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(पवमान सोम) धारारूप में प्राप्त होने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (वृषभ) सुखवर्षक (नृचक्षाः-असि) मुमुक्षुजनों को देखता है—जानता है कौन से हैं (ता त्वं विश्वतः-विधावसि) तू उन सुखों को प्राप्त कराने सब ओर विविध गुणों से जाता है प्राप्त होता है (सः) वह तू (वसुवित्-हिरण्यवित् पवस्व) मोक्षवास प्राप्त करानेवाला अमृत प्राप्त कराने वाला हमें प्राप्त हो (वयं भुवनेषु जीवसे स्याम) हम लोकों में जीने के लिए समर्थ होवें॥२॥
विशेष - <br>
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