Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1108
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च क्रमेण गौपायना लौपायना वा देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
4

व꣡सु꣢र꣣ग्नि꣡र्वसु꣢꣯श्रवा꣣ अ꣡च्छा꣢ नक्षि द्यु꣣म꣡त्त꣢मो र꣣यिं꣡ दाः꣢ ॥११०८॥

स्वर सहित पद पाठ

व꣡सुः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । व꣡सु꣢꣯श्रवाः । व꣡सु꣢꣯ । श्र꣣वाः । अ꣡च्छ꣢꣯ । न꣣क्षि । द्युम꣡त्त꣢मः । र꣣यि꣢म् । दाः꣣ ॥११०८॥


स्वर रहित मन्त्र

वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमो रयिं दाः ॥११०८॥


स्वर रहित पद पाठ

वसुः । अग्निः । वसुश्रवाः । वसु । श्रवाः । अच्छ । नक्षि । द्युमत्तमः । रयिम् । दाः ॥११०८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1108
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment

Meaning -
Agni, you are the home and shelter of the world. Pure and purifier, you create and give the food for life and energy, wealth and honour. Give us the food, energy and light of life. Come and pervade this home as the very spirit and security. (Rg. 5-24-2)

इस भाष्य को एडिट करें
Top