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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स दे॒वाना॑मी॒शांपर्यै॒त्स ईशा॑नोऽभवत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । दे॒वाना॑म् । ई॒शाम् । परि॑ । ऐ॒त् । स: । ईशा॑न: । अ॒भ॒व॒त् ॥१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स देवानामीशांपर्यैत्स ईशानोऽभवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । देवानाम् । ईशाम् । परि । ऐत् । स: । ईशान: । अभवत् ॥१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 1; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (सः) उसने (देवानाम्)सब व्यवहारकुशलों की (ईशाम्) ईश्वरता [प्रभुता] को (परि ऐत्) सब ओर से पाया और (सः) वह (ईशानः) परमेश्वर (अभवत्) हुआ ॥५॥

    भावार्थ - वह परमेश्वर ही सबव्यवहारकुशलों से अद्वितीय बड़ा चतुर है, इसी से वह परमेश्वर है ॥५॥

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