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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    व्रात्य॑आसी॒दीय॑मान ए॒व स प्र॒जाप॑तिं॒ समै॑रयत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व्रात्य॑: । आ॒सी॒त् । ईय॑मान: । ए॒व । स: । प्र॒जाऽप॑तिम् । सम् । ऐ॒र॒य॒त् ॥१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्रात्यआसीदीयमान एव स प्रजापतिं समैरयत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    व्रात्य: । आसीत् । ईयमान: । एव । स: । प्रजाऽपतिम् । सम् । ऐरयत् ॥१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 1; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (व्रात्यः) व्रात्य [अर्थात् सब समूहों का हितकारी परमात्मा] (ईयमानः) चलता हुआ (एव) ही (आसीत्)वर्तमान था, (सः) उसने (प्रजापतिम्) [अपने] प्रजापालक गुण से (सम्) यथावत् (ऐरयत्) उकसाया ॥१॥

    भावार्थ - सृष्टि से पहिले प्रलयकी अगम्य अवस्था में एक गणपति परमेश्वर सर्वव्यापक हो रहा था, उसने सृष्टिउत्पन्न करने के लिये अपने गुणों में चेष्टा प्रकट की ॥१॥

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