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अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
स वि॒शोऽनु॒व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । विश॑: । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
स विशोऽनुव्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । विश: । अनु । वि । अचलत् ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
विषय - राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।
पदार्थ -
(सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (विशः अनु) मनुष्यों की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥
भावार्थ - सर्वव्यापक परमात्माने वेदद्वारा मनुष्यों में राजधर्म का उपदेश किया है ॥१॥
टिप्पणी -
१−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥