अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
सूक्त - वाक्
देवता - साम्नी उष्णिक्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
उप॑हूतो मेगो॒पा उप॑हूतो गोपी॒थः ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ऽहूत: । मे॒ । गो॒पा: । उप॑ऽहूत: । गो॒पी॒थ: ॥२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उपहूतो मेगोपा उपहूतो गोपीथः ॥
स्वर रहित पद पाठउपऽहूत: । मे । गोपा: । उपऽहूत: । गोपीथ: ॥२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
विषय - इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पदार्थ -
(गोपाः) वाणी का रक्षक [आचार्य] (मे) मेरा (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है और (गोपीथः) भूमि का रक्षक [राजा] (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है ॥३॥
भावार्थ - मनुष्य आचार्य कीशिक्षा और राजा की व्यवस्था से सुशिक्षित होकर स्वस्थ और प्रतिष्ठित रहें॥३॥
टिप्पणी -
३−(उपहूतः) आदरेणाऽऽवाहनीकृतः (मे) मम (गोपाः) वाणीरक्षक आचार्यः (उपहूतः) (गोपीथः) निशीथगोपीथावगथाः। उ० २।९। गो+पा रक्षणे-थक्, ईत्वम्। भूपालः। राजा ॥