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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
    सूक्त - वाक् देवता - आर्ची अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    सुश्रु॑तिश्च॒मोप॑श्रुतिश्च॒ मा हा॑सिष्टां॒ सौप॑र्णं॒ चक्षु॒रज॑स्रं॒ ज्योतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽश्रु॑ति: । च॒ । मा॒ । उप॑ऽश्रुति: । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् । सौप॑र्णम् । चक्षु॑: । अज॑स्रम् । ज्योति॑: ॥२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुश्रुतिश्चमोपश्रुतिश्च मा हासिष्टां सौपर्णं चक्षुरजस्रं ज्योतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽश्रुति: । च । मा । उपऽश्रुति: । च । मा । हासिष्टाम् । सौपर्णम् । चक्षु: । अजस्रम् । ज्योति: ॥२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (सुश्रुतिः) शीघ्रसुनना (च च) और (उपश्रुतिः) अङ्गीकार करना (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों नछोड़ें, (सौपर्णम्) समस्त पूर्तिवाली (चक्षुः) दृष्टि और (अजस्रम्) अचूक (ज्योतिः) ज्योति [बनी रहे] ॥५॥

    भावार्थ - मनुष्य ब्रह्मचर्य आदिके सेवन से अपने श्रवण इन्द्रियों को विकल न होने दें और ऐसा स्वस्थ रक्खें किवे अपने विषयों को पूर्ण रीति से शीघ्र अङ्गीकार कर लें ॥५॥

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