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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 4/ मन्त्र 4
    सूक्त - आदित्य देवता - त्रिपदा अनुष्टुप् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    सूर्यो॒ माह्नः॑पात्व॒ग्निः पृ॑थि॒व्या वा॒युर॒न्तरि॑क्षाद्य॒मो म॑नु॒ष्येभ्यः॒ सर॑स्वती॒पार्थि॑वेभ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑: । मा॒ । अह्न॑: । पा॒तु॒ । अ॒ग्नि: । पृ॒थि॒व्या: । वा॒यु: । अ॒न्तर‍ि॑क्षात् । यम: । म॒नु॒ष्ये᳡भ्य: । सर॑स्वती । पार्थि॑वेभ्य: ॥४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यो माह्नःपात्वग्निः पृथिव्या वायुरन्तरिक्षाद्यमो मनुष्येभ्यः सरस्वतीपार्थिवेभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य: । मा । अह्न: । पातु । अग्नि: । पृथिव्या: । वायु: । अन्तर‍िक्षात् । यम: । मनुष्येभ्य: । सरस्वती । पार्थिवेभ्य: ॥४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (सूर्यः) सबकाचलानेवाला परमात्मा (मा) मुझे (अह्नः) दिन [के भय] से (पातु) बचावे, (अग्निः)ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर (पृथिव्याः) पृथिवी [के भय] से, (वायुः) सर्वव्यापकपरमेश्वर (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष [के भय] से, (यमः) न्यायकारी ईश्वर (मनुष्येभ्यः) मनुष्यों [के भय] से और (सरस्वती) सर्वविज्ञानमय परमेश्वर (पार्थिवेभ्यः) पृथिवी के प्राणी आदियों [के भय] से [बचावे] ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य परमात्मा कीउपासना करता हुआ सदा उपाय करे कि वह सब प्रकार के विघ्नों से सुरक्षित होकर शुभकर्मों को करता रहे ॥४॥

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