Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 4

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
    सूक्त - आदित्य देवता - आर्ची उष्णिक् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    स्व॒स्त्यद्योषसो॑ दो॒षस॑श्च॒ सर्व॑ आपः॒ सर्व॑गणो अशीय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒स्ति । अ॒द्य: । उ॒षस॑: । दो॒षस॑: । च॒ । सर्व॑: । आ॒प॒: । सर्व॑ऽगण: । अ॒शी॒य॒ ॥४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वस्त्यद्योषसो दोषसश्च सर्व आपः सर्वगणो अशीय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वस्ति । अद्य: । उषस: । दोषस: । च । सर्व: । आप: । सर्वऽगण: । अशीय ॥४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (आपः) हे आप्तविद्वानो ! (सर्वगणः) अपने सब गणों के सहित (सर्वः) सम्पूर्ण में (स्वस्ति)कल्याण से (अद्य) अब (उषसः) प्रभातवेलाओं को (च) और (दोषसः) रात्रियों को (अशीय) पाता रहूँ ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य आप्त विद्वानोंके सत्सङ्ग से प्रयत्न करें कि वे और उसके इष्ट मित्र प्रजागण आदि सदा रात-दिनसुखी रहें ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top