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अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
अग॑न्म॒ स्वःस्वरगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
स्वर सहित पद पाठअग॑न्म । स्व᳡: । स्व᳡: । अ॒ग॒न्म॒ । सम् । सूर्य॑स्य । ज्योति॑षा । अ॒ग॒न्म॒ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अगन्म स्वःस्वरगन्म सं सूर्यस्य ज्योतिषागन्म ॥
स्वर रहित पद पाठअगन्म । स्व: । स्व: । अगन्म । सम् । सूर्यस्य । ज्योतिषा । अगन्म ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
विषय - सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ -
(स्वः) सुख [तत्त्वज्ञान का आनन्द] (अगन्म) हम पावें और (स्वः) सुख [मोक्ष आनन्द] (अगन्म)हम पावें और (सूर्यस्य) सर्वप्रेरक परमात्मा की (ज्योतिषा) ज्योति से (सम्अगन्म) हम मिल जावें ॥३॥
भावार्थ - मनुष्य पुरुषार्थ केसाथ तत्त्वज्ञानी होकर मोक्षसुख पावें और परमात्मा के दर्शन के भागी होवें॥३॥
टिप्पणी -
३−(अगन्म) छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लिङर्थे लुङ्। गच्छेम। प्राप्नुयाम (स्वः) तत्त्वज्ञानसुखम् (स्वः) मोक्षसुखम् (अगन्म) प्राप्नुयाम (सम्) संगत्य (सूर्यस्य) सर्वप्रेरकस्य परमात्मनः (ज्योतिषा) तेजसा (अगन्म) प्राप्नुयाम ॥