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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 11/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    आ॑दि॒त्या रु॒द्रा वस॑वो जुषन्तामि॒दं ब्रह्म॑ क्रि॒यमा॑णं॒ नवी॑यः। शृ॒ण्वन्तु॑ नो दि॒व्याः पार्थि॑वासो॒ गोजा॑ता उ॒त ये य॒ज्ञिया॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्याः। रु॒द्राः। वस॑वः। जु॒ष॒न्ता॒म्। इ॒दम्। ब्रह्म॑। क्रि॒यमा॑णम्। नवी॑यः। शृ॒ण्वन्तु॑। नः॒। दि॒व्याः। पार्थि॑वासः। गोऽजा॑ताः। उ॒त। ये। य॒ज्ञिया॑सः ॥११.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्या रुद्रा वसवो जुषन्तामिदं ब्रह्म क्रियमाणं नवीयः। शृण्वन्तु नो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्याः। रुद्राः। वसवः। जुषन्ताम्। इदम्। ब्रह्म। क्रियमाणम्। नवीयः। शृण्वन्तु। नः। दिव्याः। पार्थिवासः। गोऽजाताः। उत। ये। यज्ञियासः ॥११.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 11; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (आदित्याः) अखण्ड ब्रह्मचारी, (रुद्राः) ज्ञानदाता और (वसवः) श्रेष्ठ विद्वान् लोग (इदम्) इस (क्रियमाणम्) सिद्ध होते हुए (नवीयः) अधिक नवीन (ब्रह्म) धन वा अन्न को (जुषन्ताम्) सेवें। (दिव्याः) दिव्य [कामनायोग्य] गुणवाले, (पार्थिवासः) पृथिवी के स्वामी (उत) और (गोजाताः) वाणी में प्रसिद्ध [सत्यवक्ता] पुरुष, (ये) जो (यज्ञियासः) पूजायोग्य हैं, (नः) हमारी [प्रार्थना] (शृण्वन्तु) सुनें ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य धार्मिक विद्वानों को अच्छे प्रकार प्रसन्न करके मनोरथ सिद्ध करें ॥४॥

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