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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 12/ मन्त्र 1
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुवीर सूक्त

    उ॒षा अप॒ स्वसु॒स्तमः॒ सं व॑र्तयति वर्त॒निं सु॑जा॒तता॑। अ॒या वाजं॑ दे॒वहि॑तं सनेम॒ मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षाः। अप॑। स्वसुः॑। तमः॑। सम्। व॒र्त॒य॒ति॒। व॒र्त॒निम्। सु॒ऽजा॒तता॑। अ॒या। वाज॑म्। दे॒वऽहि॑तम्। स॒ने॒म॒। मदे॑म। श॒तऽहि॑माः। सु॒ऽवीराः॑ ॥१२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषा अप स्वसुस्तमः सं वर्तयति वर्तनिं सुजातता। अया वाजं देवहितं सनेम मदेम शतहिमाः सुवीराः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषाः। अप। स्वसुः। तमः। सम्। वर्तयति। वर्तनिम्। सुऽजातता। अया। वाजम्। देवऽहितम्। सनेम। मदेम। शतऽहिमाः। सुऽवीराः ॥१२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 12; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (उषाः) प्रभात वेला (स्वसुः) [अपनी] बहिन [रात्रि] के (तमः) अन्धकार को (अप=अपवर्तयति) हटा देती है, और (सुजातता) [अपनी] भलमनसाहत से (वर्तनिम्) [उसके लिये] मार्ग (सम्) मिलकर (वर्तयति) बता देती है। (अया) इस [नीति] से (शतहिमाः) सौ वर्ष जीवते हुए और (सुवीराः) सुन्दर वीरों को रखते हुए हम (देवहितम्) विद्वानों के हितकारी (वाजम्) विज्ञान को (सनेम) बाँटें और (मदेम) आनन्द करें ॥१॥

    भावार्थ - पृथिवी की गोलाई के कारण आधे भूगोल में एक साथ प्रकाश करने से उषा रात्रि को हटाकर जितनी आगे बढ़ती है, उतना ही स्थान रात्रि को पीछे से देती चलती है और दोनों प्रीतिपूर्वक मिलकर जगत् का उपकार करती हैं, इसी प्रकार सब मनुष्य ज्ञान के प्रचार से परस्पर उपकार करके बड़े-बड़े धैर्यवान् बलवानों सहित पूर्ण आयु भोगें ॥१॥

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