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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 18

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आर्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    वा॒युं ते॒न्तरि॑क्षवन्तमृच्छन्तु। ये मा॑घा॒यव॑ ए॒तस्या॑ दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒युम्। ते। अ॒न्तरि॑क्षऽवन्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। ए॒तस्याः॑। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायुं तेन्तरिक्षवन्तमृच्छन्तु। ये माघायव एतस्या दिशोऽभिदासात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायुम्। ते। अन्तरिक्षऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। एतस्याः। दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (ते) वे [दुष्ट] (अन्तरिक्षवन्तम्) मध्यलोक के स्वामी (वायुम्) सर्वव्यापक परमेश्वर की (ऋच्छन्तु) सेवा करें। (ये) जो (अघायवः) बुरा चीतनेवाले (मा) मुझे (एतस्याः) इस [बीचवाली] (दिशः) दिशा से (अभिदासात्) सताया करें ॥२॥

    भावार्थ - मन्त्र १ के समान है ॥२॥

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