अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - प्राजापत्या त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
वि॒श्वक॑र्माणं॒ ते स॑प्तऋ॒षिव॑न्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यव॒ उदी॑च्या दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वऽक॑र्माणम्। ते। स॒प्त॒ऋ॒षिऽव॑न्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। उदी॑च्याः। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.७॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वकर्माणं ते सप्तऋषिवन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायव उदीच्या दिशोऽभिदासात् ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वऽकर्माणम्। ते। सप्तऋषिऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। उदीच्याः। दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 7
विषय - रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ -
(ते) वे [दुष्ट] (सप्तऋषिवन्तम्) सात ऋषियों [हमारे कान आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रियों मन, बुद्धि] के स्वामी (विश्वकर्माणम्) विश्वकर्मा [सबके बनानेवाले परमेश्वर] की (ऋच्छन्तु) सेवा करें। (ये) जो (अघायवः) बुरा चीतनेवाले (मा) मुझे (उदीच्याः) उत्तर वा बायीं (दिशः) दिशा से (अभिदासात्) सताया करें ॥७॥
भावार्थ - मन्त्र १ के समान है ॥७॥
टिप्पणी -
७−(विश्वकर्माणम्) सर्वस्रष्टारं परमेश्वरम् (सप्तऋषिवन्तम्) सू०१७। म०७। छन्दसीरः। पा०८।२।१५। मतुपो वः। मनोबुद्धिसहितपञ्चज्ञानेन्द्रियाणां स्वामिनम् (उदीच्याः) उत्तरस्याः वामस्थायाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥