अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
परि॑ धत्त ध॒त्त नो॒ वर्च॑से॒मं ज॒रामृ॑त्युं कृणुत दी॒र्घमायुः॑। बृह॒स्पतिः॒ प्राय॑च्छ॒द्वास॑ ए॒तत्सोमा॑य॒ राज्ञे॒ परि॑धात॒वा उ॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। ध॒त्त॒। ध॒त्त। नः॒। वर्च॑सा। इ॒मम्। ज॒राऽमृ॑त्युम्। कृ॒णु॒त॒। दी॒र्घम्। आयुः॑। बृह॒स्पतिः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। वासः॑। ए॒तत्। सोमा॑य। राज्ञे॑। परि॑ऽधात॒वै। ऊं॒ इति॑ ॥२४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
परि धत्त धत्त नो वर्चसेमं जरामृत्युं कृणुत दीर्घमायुः। बृहस्पतिः प्रायच्छद्वास एतत्सोमाय राज्ञे परिधातवा उ ॥
स्वर रहित पद पाठपरि। धत्त। धत्त। नः। वर्चसा। इमम्। जराऽमृत्युम्। कृणुत। दीर्घम्। आयुः। बृहस्पतिः। प्र। अयच्छत्। वासः। एतत्। सोमाय। राज्ञे। परिऽधातवै। ऊं इति ॥२४.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
विषय - राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
[हे विद्वानो !] (नः) हमारे लिये (इमम्) इस [पराक्रमी] को (परि धत्त) [वस्त्र] पहिराओ और (वर्चसा) तेज के साथ (धत्त) पुष्ट करो और (जरामृत्युम्) बुढ़ापे [अर्थात् निर्बलता] को मृत्यु समान त्याज्य माननेवाला [अथवा स्तुति के साथ मृत्युवाला] (दीर्घम्) बड़ी (आयुः) आयु (कृणुत) करो। (बृहस्पति) बृहस्पति [बड़े-बड़े विद्वानों के रक्षक पुरोहित] ने (एतत्) यह (वासः) वस्त्र (सोमाय) सूर्यसमान (राज्ञे) राजा को (उ) ही (परिधातवे) धारण करने के लिये (प्र अयच्छत्) दिया है ॥४॥
भावार्थ - सुनीतिज्ञ पुरुष को मनुष्य वस्त्र आदि पहिनाकर राजसिंहासन पर सुशोभित करें और सब विद्वान लोग प्रतिष्ठा के साथ उसे राज्य करने के लिये उत्साह देवें ॥४॥
टिप्पणी -
यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व०२।१३।२॥४−(जरामृत्युम्) जरा निर्बलता मृत्युर्दुःखमिव त्याज्यं यस्य तम्। यद्वा जरया स्तुत्या मरणयुक्तम् (सोमाय) सोमः सूर्यः प्रसवनात्-निरु०१४।१२। अन्यद् व्याख्यातम्-म०२।१३।२